अध्यात्म की शक्ति
भारतीय परंपरा में वर्ष में दो बार नवरात्र आते हैं-चैत्र एवं शारदीय नवरात्र पर्व शक्ति उपासना एवं स्वयं को शक्ति संपन्न बनाने का विशिष्ट पर्व है। इस दौरान संकल्प एवं संयम की शक्ति द्वारा व्यक्ति अध्यात्म संपन्न बनने की साधना करता है। दुनिया में अनेक शक्तियां हैं, किंतु सर्वोपरि शक्ति है-अध्यात्म की शक्ति। अध्यात्म के अभाव में सारी शक्तियां निष्प्राण मानी गई हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अध्यात्म शक्ति की दिशा में बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार नवरात्र एक आध्यात्मिक पर्व है। आत्मा तक पहुंचने का पर्व है। अपने अस्तित्व की यात्रा करने का पर्व है।
अस्तित्व और व्यक्तित्व, दो अलग-अलग चीज हैं। आत्मा हमारा अस्तित्व है और शरीर व्यक्तित्व । अभी हमारे सामने व्यक्तित्व है, अस्तित्व नहीं, क्योंकि आत्मा हमारे सामने नहीं है। यही कारण है कि जितनी चिंता हम व्यक्तित्व की करते हैं, उतनी अस्तित्व की नहीं करते। यानी जितनी चिंता शरीर की करते हैं, उतनी चिंता आत्मा की नहीं करते। नवरात्र हमें एक याद दिलाता है कि केवल शरीर तक सीमित न रहें। अपने आत्मा के बारे में चिंतन करें। आत्मा तक पहुंचने का प्रयत्न करें। आज हमारे सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न है शरीर
से भिन्न आत्मा को समझने का। अभी तो हमारी मति बनी हुई है कि सब जगह शरीर सामने आता है। आत्मा का कहीं पता नहीं है। यह स्वाभाविक है कि जो स्थूल है, दृश्य है, वह सामने आता है। जो सूक्ष्म है, अदृश्य है, वह हमारे सामने नहीं आता। और जो सामने नहीं आता, उस पर हमारा ध्यान भी नहीं जाता। हम उसकी ज्यादा चिंता भी नहीं करते और उस पर सहज विश्वास भी नहीं होता। ध्यान उसी पर जाता है, जो आंखों के सामने दिखाई देता है। नवरात्र पर्व इसी कठिनाई को समझने अवसर है। यह चेतना को जगाने वाला पर्व है। आइए अधिक से अधिक आत्मोनुखी बनें। शरीर को गौण कर सारा प्रयत्न आत्मा के उत्थान की दिशा में लगाएं।