तर्ज—करती हूँ तुम्हारी पूजा……
करते हैं प्रभू की आरति, आतमज्योति जलेगी।
प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी।।
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तर्यामी।।टेक.।।
हे सिंहसेन के राजदुलारे, जयश्यामा प्यारे।
साकेतपुरी के नाथ, अनंत गुणाकर तुम न्यारे।।
तेरी भक्ती से हर प्राणी में शक्ति जगेगी,
प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी।। हे…..।।१।।
वदि ज्येष्ठ द्वादशी मे प्रभुवर, दीक्षा को धारा था,
चैत्री मावस में ज्ञानकल्याणक उत्सव प्यारा था।
प्रभु की दिव्यध्वनि दिव्यज्ञान आलोक भरेगी, प्रभुवर …………………….।।२।।
सम्मेदशिखर की पावन पूज्य धरा भी धन्य हुई
जहाँ से प्रभु ने निर्वाण लहा, वह जग में पूज्य कही।
उस मुक्तिथान को मैं प्रणमूँ, हर वांछा पूरेगी, प्रभुवर ……………………..।।३।।
सुनते हैं तेरी भक्ती से, संसार जलधि तिरते,
हम भी तेरी आरति करके, भव आरत को हरते।
चंदनामती क्रम-क्रम से, इक दिन मुक्ति मिलेगी, प्रभुवर………………………।।४।।