मैंने एक साल ऐसे रेस्टॉरेंट में प्रबंधन का कार्य संभाला, जहां शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों तरह का खाना बनता है। अपनी आँखों के सामने ऐसा प्रदूषित वातावरण देखना एक ऐसा पीड़ाजनक अनुभव है जिसे शब्दों में बयां करना बहुत कठिन है। मैं स्वयं अपने को दोषी मानता हूँ , हिस्सा मानता हूँ , ऐसे नारकीय वातावरण में कार्य करने के लिए । परन्तु कभी —कभी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ ऐसे काम करने को विवश कर देती हैं। मुझे अपने इस अनुभव को आप तक पहुँचाना इसलिए जरूरी लगा क्योंकि वे लोग जो ऐसे रेस्टॉरेंट में खाना खाते हैं और सोचते हैं कि वे पूर्णत: शाकाहारी भोजन ही ग्रहण कर रहे हैं, तो वे पूर्णत: गलत हैं। आइए अब आपको एक ऐसा ही शाकाहारी मांसाहारी रेस्टॉरेंट की रसोईघर यानी किचन की झलक दिखलाते हैं— सर्वप्रथम तो परिचित करवाते हैं किचन की बनावट से जो सामान्यत: सभी रेस्टॉरेंट में तीन भागों में बंटी रहती है—
१. तन्दूर सेक्शन २. इंडियन सेक्शन, ३. चायनीज् सेक्शन
(१) तन्दूर सेक्शन— यहां पर शाकाहारी व मांसाहारी यानी वेज एवं नानवेज तन्दूरी भोजनसामग्री तैयार होती है । तन्दूरी रोटी के साथ नान का आटा भी लगाया जाता है जिसमें खमीर उठने के लिए और नर्म व सुस्वादु बनाने के लिए अंडे का इस्तेमाल किया जाता है।
२. जो टेबल तंदूर उस्ताद के पास होती है वो एक ही होती है जिस पर रोटी का आटा व नानवेज के सारे आइटम एक साथ रखे रहते हैं।
३. जब कोई मांसाहारी तन्दूरी आइटम बनाना होता है तो पहले उस पर मक्खन व तेल का मिश्रण लगाया जाता है इसके लिए एक डब्बे में तेल व मक्खन का मिश्रण भरा होता है तथा एक लकड़ी पर कपड़ा बांधकर मिश्रण में डाल देते हैं, जिसके द्वारा वह मिश्रण तन्दूर मुर्ग पर लगाया जाता है तथा उसी लकड़ी व उसी मिश्रण का शाकाहारी लोगों की रोटी नान पर भी उपयोग किया जाता है।
४. किसी भी तन्दूरी डिश जैसे पनीर टिक्का, पनीर पुदीना टिक्का, वेज सीक कबाब को तैयार करने के लिए पहले टिक्का व कबाब बनाये जाते हैं, जिन्हें लोहे की सलाखों में लगाकर तन्दूर में डाला जाता है।
५. यहाँ ध्यान देने योग्य यह है कि इन लोहे की सलाखों का उपयोग मांसाहारी व्यंजन के लिए भी किया जाता है । इन सलाखों को कभी धोया भी नहीं जाता है।
६. इन सिके हुये , मक्खन लगे तन्दूरी व्यंजन पर मसाला लगाया जाता है, जो एक बड़े बर्तन में रखा होता है तथा व्यंजन चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी दोनों को एक ही बर्तन में रखे मसाले में लपेट कर मसाला लगाया जाता है।
(२) इन्डियन सेक्शन— १. यह रसोई का वह हिस्सा है जहां पर सभी सब्जियाँ व दालें बनती हैं । यहाँ पर एक—दो भट्टियाँ व दो टेबलें पास—पास रखी होती हैं।
२. टेबल पर सारा कच्चा माल जैसे मावा, पनीर, दूध, दही, क्रीम रखा होता है, उसी टेबल पर मांसाहारी खाने की कच्ची सामग्री भी रखी होती है।
३. भट्टी के पास ही सारे मसाले रखे होते हैं जो भी आर्डर आता हैं, चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी, कुक (रसोईया) उसको बनाते समय एक ही फ्रायपान व चम्मच का इस्तेमाल करता है।
४. किसी दाल को पतला करना हो या ग्रेवी में पानी मिलाना हो तो इस तपेले का पानी मिलाया जाता है जिसमें हर तरह की वेज—नानवेज चम्मच डालते हैं।
(३) चायनीज् सेक्शन — चायनीज् बनाने के लिए भी मुख्यत: दो भट्टीयां लगी होती हैं एवं साइड—टेबल कच्चा माल रखने के लिए होती है।
१. यदि आप स्प्रिंग रोल खा रहे हैं तो उसको चिपकाने के लिए अण्डे की जर्दी का उपयोग होता है।
२. चिली पनीर के घोल व मंचुरियन के पकोड़ों में भी अण्डे का इस्तेमाल होता है। सूप में व कोई भी ग्रेवी की चीज बनाने में जो पानी इस्तेमाल होता है वह चिकन स्टाक होता है। (चिकन को उबालकर उसका जो पानी बचता है उसे चिकन स्टाक कहते हैं)
३. तलने के लिए एक कढ़ाई होती है जिसमें शाकाहारी जैसे पापड़ , चिप्स व मांसाहारी जैसे मच्छली, चिकन दोनों ही तले जाते हैं ।
४. सब्जी काटने के लिए लकड़ी के पटियों को काम में लाया जाता है। उन्हीं पटियों पर रखकर जो चाकू सब्जी काटने के काम में आते हैं उन्हीं से मटन —ाqचकन काटा जाता है। तथा इन चाकुओं व पटियों को कभी धोया भी नहीं जाता है।
५. डीप फ्रीज जो प्रिजर्वेशन के लिए होता है उसमें वेज—नानवेज दोनों रखे जाते हैं ।
६. तंदुर पर उस्ताद जिन हाथों से चिकन काटते हैं, रोटी का आर्डर आने पर बिना हाथ धोए, रोटी भी बना देते हैं।
७. स्टील की एक बड़ी टेबल जिस पर कटा हुआ चिकन , मटन आदि रखते हैं उसी पर वक्त आने पर चावल भी बनाकर ठंड़ा करने के लिए फैला दिया जाता हैं, जिसमें कई बार खून व मांस भी मिल जाता है।
८. फ्रूट सलाद जिसका नानवेज से कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए,उसे भी टेस्टी बनाने के लिए अंडा फेटकर मिलाते हैं।
९. रविवार या छुट्टी में दिनों में या पार्टी होने पर जब भीड़ अत्यधिक होती है तब किचन की सफाई, स्वच्छता पर ध्यान न देते हुए ग्राहक को आर्डर के अनुरूप सामग्री देने की जल्दी होती है, ऐसे समय में किचन को देखना नर्ककी अनुभूति करने के सामान है क्योंकि पूरे किचन में जगह—जगह पर नानवेज के अवशेष पड़े रहते हैं।
१०. ऐसे समय कई बार ग्राहकों को गलतफहमी में वेज की जगह नानवेज डिश भी लग जाती है। पानी की शुद्धता जरा भी नहीं होती है क्योंकि वह ऐसी टंकियों में एकत्रित होता रहता है जिनकी साफ—सफाई महीनों नहीं होती है। स्टॉफ के सदस्यों के अनुभव के आधार पर यह निष्कर्ष सामने आता है कि चाहे छोटा सा रेस्टॉरेंट हो या बड़ा होटल यदि वेज—नानवेज साथ—साथ बनता है तो वहां इसी प्रकार कार्य होता है। देखा जाए तो गलत वे लोग नहीं हैं जो ऐसे प्रतिष्ठानों में मालिक हैं या उसमें कार्यरत हैं क्योंकि वे लोग अधिकांशतया मांसाहारी हो होते हैं, इसलिए उन सबके लिए एक पूर्ण शाकाहारी की भावना समझना कठिन कार्य है। साथ ही किचन स्टॉफ का कहना है कि बगैर अण्डा या चिकन—स्टॉक मिलाए कोई व्यंजन बनाते हैं , तो ग्राहक को वह स्वाद ही नहीं आता जिसकी आदत उसे वर्षों से पड़ी हुई है। अत: मैं केवल इतना ही कहना चाहूँगा कि जो अज्ञानतावश ऐसे रेस्टॉरेंट में खाना खाते हैं और उन लोगों के लिए भी जो इस सच्चाई को जानते तो है पर हाई —सोसायटी व पाश्चात्यता का नकाब ओढने के कारण यह सब अनदेखा कर देते है उन्हें सोचने की आवश्यकता है।