जीवो की कषायों की विचित्रता सामान्य बुद्धि का विषय नहीं है। आगम में कषाय अनन्तानुबन्धी आदि चार प्रकार की बताई गयी है। इन चारों के निमित्तभूत कर्म भी इन्हीं नाम वाले है। यह वासनारूप होती है व्यक्त रूप नहीं । जहाँ पर पदार्थों के प्रति मेरे- तेरेपन की या इष्ट- अनिष्टपने की जो वासना जीव में देखी जाती है वह अनन्तानुन्धी कषाय है क्योंकि वह जीव का अनन्त संसार में बन्ध कराती है यह अनन्तानुबन्धी प्रकृति के उदय से होती है।
अनन्तानुबन्धी कषाय का वासनाकाल छ: माह है।