एक ओर उसके लाड़ले की नृशंस हत्या का दृश्य, नेत्रों के सम्मुख चलायमान था तो दूसरी ओर उदय सिंह का वियोग पीड़ा पहुँचा रहा था। उसकी आँखों के सन्मुख अंधेरा आ गया और वह एक वृक्ष के नीचे बैठ गई। कुछ समय पश्चात् उसने अपने मन को समझाया कि अपने पुत्र की बलि देकर उसने महारानी कर्मवती को दिए वचन का निर्वाह करते हुए अपने कत्र्तव्य का पालन किया है। अन्तत: पन्ना ने चित्तौड़गढ़ की वर्तमान परिस्थितियों का सामना करने की योजना बनाकर शान्त, सुस्थिर चित्त से चित्तौड़गढ़ के किले में प्रवेश किया। वहाँ के कर्मचारीगण एवं दास—दासियाँ पन्ना का मान करते हुए धाय माँ सम्बोधित करते थे। वहाँ सबने उससे चंदन के बारे में पूछा तब उसने उत्तर दिया—यहाँ आकर वह कुंवर उदय सिंह के संबंध में पूछता, हत्या का पता लगने पर रोता—चिल्लाता इसलिए उसे ननिहाल में ही छोड़ दिया। पन्ना को यह सूचना भी मिली कि बनवीर ने राजगद्दी तो प्राप्त कर ली परन्तु सामन्तगण उससे प्रसन्न नहीं हैं तथा उसके अत्याचारों से प्रजाजन भी दु:खी हैं। सब अवसर मिलते ही उसे राजगद्दी से नीचे उतारना चाहते हैं। सरदार चूड़ावत के नेतृत्व में अनेक सामन्य कुम्भलनेर पहुँचे। उनमें से अनेक ने कुंवर को बचपन में देखा था। इन सबके सामने आशा शाह ने सत्य उजाकर कर दिया। प्रमाण मांगने पर कहा, ‘‘पन्ना धाय से बढ़कर इसका प्रमाण कोई नहीं दे सकता।’’ सबके चकित होने पर आशाशाह ने पन्ना की स्वामिभक्ति, कत्र्तव्यनिष्ठा, पुत्र चंदन के बलिदान का संक्षिप्त विवरण सुनाया जिसे सुनकर सबने पन्नाधाय के प्रति सम्मान व्यक्त किया और गोपनीय विधि से धाय माँ को वहाँ बुलाया। बालक के स्थान पर हृष्ट—पुष्ट युवक को देखकर पन्ना की छाती फूल गई और नेत्र, निर्झर बन गए। उदयिंसह को अपना बचपन स्मरण हो गया। वह दौड़कर ‘‘माँ’ कहते हुए पन्ना से लिपट गया। उदयिंसह के मामा ने भी अपने भानजे को पहचान लिया। समग्र स्थिति स्पष्ट होने पर सभी सामन्तों तथा आसपास के राजाओं ने मिलकर चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया। आशाशाह के कहने पर दुर्गपाल चील मेहता ने भी गुप्त रूप से सहयोग कर दुर्ग का द्वार रात्रि के समय खोल दिया। परिणामत: उदयिंसह ने विजय प्राप्त कर हत्यारे, व्रूर बनवीर के कुशासन का अंत कर दिया। महाराणा उदयिंसह का राजतिलक समारोह देखकर पन्ना हर्षविभोर हो गई और आँखों से आनन्दाश्रु प्रवाहित होने लगे क्योंकि आज महारानी कर्मवती को दिया वचन पूर्ण हो गया। महाराणा उदयिंसह ने पन्नाधाय को राजमाता का स्थान देकर उनकी चरण वंदना की। उपस्थित सामन्तगण एवं प्रजाजन ने राजमाता पन्नाधाय एवं महाराणा उदयिंसह की जय—जयकार से वातावरण गुंजायमान कर दिया। इन्हीं महाराणा उदयिंसह ने उदयपुर नगर बसाया। उज्जवल र्कीित महाराणा प्रतापिंसह, इन्हीं के महापराक्रमी, शक्तिशाली, साहसी योद्धा एवं दृढ़ प्रतिज्ञ पुत्र थे। यह वंश बेल महीबली पन्नाधाय के कारण फूली—फली, जिन्होंने निर्वंश होते सिसौदिया कुल की रक्षा जिस प्रकार अपनी आत्मा के अंश पुत्र चंदन की बलि देकर की, ऐसा उदाहरण संपूर्ण विश्व में मिलना दुर्लभ है। इस अनुपम त्याग के कारण पन्नाधाय का नाम इतिहास में अमर हो गया।