किसी बात को पुन: पुन: चिन्तवन करते रहना अनुप्रेक्षा है। मोक्षमार्ग में वैराग्य की वृद्धि के अर्थ बारह प्रकार की अनुप्रेक्षाओं का कथन जैनागम में प्रसिद्ध है। इन्हें बारह वैराग्य भावनाएं भी कहते है। इनके भाने से व्यक्ति शरीर व भोगों से निर्विण्ण होकर साम्य भाव में स्थिति पा सकता है। यह अनुप्रेक्षाओं की भावना कर्म के क्षय के लिए कारण होती है।
अन्तिय, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म अनुप्रेक्षा ये बारह प्रकार की भावनाएं हैं जिनका वर्णन भिन्न-भिन्न प्रकार से अनेक कवियों ने, आचार्यों ने किया है। इन बारह भावनाओं का निरन्तर चिन्तवन प्रत्येक साधक को मोक्ष का पथिक बनाकर संसार परिभ्रमण से मुक्त कर देता है।