लोहे की एक छोटी सी कील पानी में नहीं तैरती है किन्तु लोहे का विशाल जहाज पानी में तैरता है, भौतिक विज्ञान के इस तथ्य को हम अच्छी तरह जानते हैं एवं समझते हैं। कील का डूबना एवं जहाज का तैरना ये दोनों ऐसी परस्पर विरोधी बाते ऐसी हैं जिसे हमारी साधारण विवेक बुद्धि या साधारण तर्क शक्ति स्वीकार नहीं करती है। किन्तु विज्ञान जब सचमुच प्रयोग द्वारा यह दिखाता है तो हमें हमारी विवेक बुद्धि एवं तर्क शक्ति को इसे मानना होता है कि हम इन परस्पर विरोधी बातों का एक सत्य स्वीकार कर लें। सच पूछा जाये तो ज्यों—ज्यों विज्ञान का विकास होता गया त्यों—त्यों ऐसी स्थितियाँ और अधिक बनती गईं जहां दो या दो से अधिक परस्पर विरोधी बातें एक साथ सत्य प्रतीत होती है। क्वाण्टम सिद्धान्त में ऐसे विरोधाभासों की बहुत प्रचुरता है। क्वान्टम सिद्धान्त भौतिक विज्ञान का ही नहीं अपितु आधुनिक ज्ञान विज्ञान का सर्वोच्च शिखर समझा जाता है। परस्पर विरोधी कथनों के एक साथ सत्यरूप में लगने के कारण क्वाटम सिद्धान्त को समझना एवं पचाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। क्वाण्टम सिद्धान्त की रग—रग में न केवल परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले कथनों की स्वीकृति दिखाई देती है अपितु सूक्ष्म कणों के वर्णन में क्वाण्टम सिद्धान्त यह कहने में भी हिचक नहीं करता है कि प्रकृति के कई रहस्यों को क्वाण्टम सिद्धान्त के समीकरणों से समझा तो जा सकता है किन्तु उन्हें शब्दों या भाषा द्वारा नहीं कहा जा सकता है।
सात भंगों का सरल भाषा में अर्थ है—सात प्रकार से कथन। इन सात प्रकारों में चार प्रकार ऐसे हैं जहाँ पदार्थ को किसी अपेक्षा से अकथनीय या अवर्णनीय यानी ‘अवक्तव्य’ स्वीकारा गया है। क्वाण्टम सिद्धान्त के पूर्व १९वीं शताब्दी में वैज्ञानिकों को यह मानने की आवश्यकता नहीं हुई कि पदार्थ अवर्णनीय या अकथनीय भी है किन्तु क्वाण्टम सिद्धान्त के आने से एक विशेष बात यह हुई कि अकथनीयता को विज्ञान में सम्मानजनक स्वीकृति प्राप्त हुई। दूसरों शब्दों में क्वाण्टम सिद्धान्त कई सन्दर्भों में अकथनीयता को व्यक्ति के ज्ञान की सीमा या यंत्रों की कमजोरी न मानकर पदार्थ की ही विशेषता स्वीकार करता है। यही नहीं, ऐसा भी है कि अकथनीयता के कथन की इतनी आवश्यकता क्वाण्टम सिद्धान्त में रहती है कि इसके बिना क्वाण्टम सिद्धान्त के अनुसार वस्तु का स्वरूप समझ में नहीं आ सकता है।
उन्होंने अपनी एक पुस्तक में क्वाण्टम सिद्धान्त की अकथनीयता या अवक्तव्यता को ही मुख्य रूप से समझाने हेतु एक विस्तृत विवेचन ‘क्वाण्टम व्यवहार’ (Quantum Behaviour) शीर्षक के अन्तर्गत किया। इसमें उन्होंने जो प्रयोग समझाया उसकी चर्चा करना यहाँ उपयोगी होगा।
इस प्रयोग में दो छिद्रों वाली एक प्लेट के एक तरफ से इलेक्ट्रॉन भेजे जाने की व्यवस्था होती है एवं दूसरी तरफ सामने एक दूसरी प्लेट पर इलेक्ट्रॉन पहुँचने पर उनकी गिनती की जाती है। यह जानने की व्यवस्था रहती है कि किसी स्थान पर कितने इलेक्ट्रॉन पहुँचते हैंं इस प्रक्रिया के परिणामों की चर्चा करते हुए फाइनमैन ने मुख्यतया यह समझाने का प्रयास किया है कि यह भी सत्य है कि इलेक्ट्रॉन अखण्ड रूप में ही सामने वाली प्लेट पर पहुँचता है यानी इलेक्ट्रॉन किसी भी छेद में से टुकड़े जैसा होकर नहीं जाता है व दोनों छेदों के अतिरिक्त अन्य मार्ग से भी नहीं जाता है किन्तु यह मानना भी असत्य होगा कि कोई इलेक्ट्रॉन या तो छेद नं १ से होकर गया होगा या छेद नं. २ से होकर गया होगा। यदि यह माना जाये कि इलेक्ट्रॉन या तो छेद नं. १ से गया होगा या छेद नं २ से गया होगा तो सिद्धान्त एवं प्रयोग में विरोध आयेगा। यानी स्थिति यह है कि किसी अपेक्षा से छेद नं. १ से इलेक्ट्रॉन का जाना कहा जा सकता है तो किसी अपेक्षा से उसी छेद से नहीं जाना कहा जा सकता है, और किसी अपेक्षा से अवक्तव्यपना या अकथनीयता भी कहा जा सकता है। यानी बिना अवक्तव्यपने का सहारा लिये इस प्रयोग में इलेक्ट्रान या तो छेद नं. १ से होकर गया होगा या छेद नं. २ से होकर गया होगा। क्योंकि सामान्य तर्क बुद्धि यही कहेगी कि चूँकि इलेक्ट्रान छेदों से ही होकर जाता है अत: या तो छेद नं १ से गया होगा या छेद नं. २ से गया होगा)
हम क्वाण्टम सिद्धान्त में सूक्ष्म कणों के बारे में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से स्याद्वाद के सातों भंगों (कथनों) को स्वीकार करते हैं। उदाहरण के रूप में हम यहाँ इलेक्ट्रॉन के लिये यह कथन यहाँ लिख रहे हैं जो क्वाण्टम सिद्धान्त के द्वारा मान्य है। सिद्धान्त ही नहीं अपितु आधुनिक प्रयोग भी इनका आधार है। तथ्य यह है कि कुछ प्रयोग पदार्थ का कण स्वीकार करते हैं व तरंग रूप नकारते हैं तो कुछ प्रयोग उसी पदार्थ का तरंग रूप स्वीकारते हैं व कण रूप नकारते हैं। इस शताब्दी के दूसरे एवं तीसरे दशक में वैज्ञानिकों के सामने यह विकट समस्या थी कि प्रकाश का कण रूप स्वीकारें या तरंग रूप स्वीकारें या इसी प्रकार इलेक्ट्रान का कण रूप स्वीकारा जाये या तरंग रूप। क्वाण्टम सिद्धान्त या क्वाटम यांत्रिकी ने इस समस्या को एक नवीन एवं अद्भुत तरीके से हल किया जिसे स्याद्वाद का एक रूप भी कहा जा सकता है। क्वाण्टम सिद्धान्त इलेक्ट्रॉन के कण—कण को स्वीकारता भी है व नकारता भी है व इसी प्रकार तरंग रूप को भी स्वीकारता भी है व नकारता भी है। साथ ही क्वाण्टम सिद्धान्त यह भी कहता है कि इलेक्ट्रॉन का कण एवं तरंग का मिला—जुला रूप ऐसा है जो वर्णनातीत है।
१. कथंचित् (किसी अपेक्षा से) इलेक्ट्रान कण है।
२. कथंचित् (किसी अपेक्षा से) इलेक्ट्रान कण नहीं है।
३. कथंचित् (किसी अपेक्षा से) इलेक्ट्रान कण है भी व कण नहीं भी है।
४. कथंचित् (किसी अपेक्षा से) इलेक्ट्रान का स्वरूप अवक्तव्य (अवर्णनीय) है।
५. इलेक्ट्रान का कण रूप कथंचित् अवक्तव्य है।
६. यह कथंचित् अवक्तव्य है कि इलेक्ट्रॉन कण रूप नहीं है।
७. इलेक्ट्रान कण रूप है या कण रूप नहीं है यह कथंचित् अवक्तव्य है।
स्याद्वाद का शाब्दिक अर्थ होता है ऐसा वाद (कथन) जिसमें ‘स्याद्’ या ‘स्यात्’ अर्थात् कथंचित् यानी ‘किसी अपेक्षा से’ विशेषण का सद्भाव है। जब वक्ता एवं श्रोता या लेखक एवं पाठक के बीच पूर्ण सन्दर्भ या धारणा स्पष्ट हो तो यह आवश्यक नहीं है कि वाणी या लेखनी में ‘स्यात्’ शब्द का प्रयोग हो। ऐसी स्थिति में ‘स्यात्’ शब्द का उपयोग गौण हो जाता है किन्तु अभिप्राय में कायम रहता है। कालबेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोलने पर बच्चा जब अपने मामा को देखता है तो माँ से यही कहता है कि ‘मामा आये हैं’। इस कथन में यह गौण है कि ‘मेरे मामा’ यानी ‘मम्मी के भाई’ आये हैं। इसी प्रकार भौतिकी विज्ञान में भी इलेक्ट्रान को जब कण कहा जाता है तब बिना कहे ही मान लिया जाता है कि इलेक्ट्रान यद्यपि कणरूप नहीं भी है किन्तु इस समय इलेक्ट्रान के कणरूप की प्रमुखता से कथन हो रहा है। यह बात अलग है कि जैसे दूल्हे के मामाजी दूल्हे के मित्रों के भी मामाजी कहलाते—कहलाते सभी बारातियों के मामाजी कहलाने लगते हैं व ऐसी स्थिति भी बनने लगती है कि वह व्यक्ति जो कि दूल्हे का मामा है, सभी का मामा बन जाता है। इसी प्रकार भौतिक विज्ञान में भी इलेक्ट्रान का कणरूप एवं प्रकाश का तरंग रूप प्रारम्भ में इतना अधिक चर्चित होता है कि साधारण विद्यार्थी यही मानने लगते हैं कि मूलत: इलेक्ट्रान कण है वह अपवाद् स्वरूप तरंग भी है। यह धारणा गलत है। वस्तुस्थिति यही है कि उसके प्रत्येक रूप के साथ कथंचित् या स्यात्पना छिपा हुआ है। अत: न केवल विज्ञान एवं व्यावहारिक जगत् में अपितु आध्यात्मिक कथनों में भी जब कभी ‘किसी अपेक्षा से’ या ‘स्यात्’ विशेषण गौण हों तब उस कथन का मर्म समझने हेतु उसमें छिपी हुई ‘अपेक्षा’ को समझना आवश्यक होगा।
एक उदाहरण से उक्त कथन स्पष्ट हो सकता है, जैसे शास्त्रों में इस प्रकार का कथन आता है कि ‘घर कारागृह वनिता बेड़ी परिजन जन रखवाले’ अर्थात् घर एक वैâद है, पत्नी हथकड़ी है व रिश्तेदार उस कैद के सिपाही है। अब यहाँ ‘स्याद्वाद’ लगाना नहीं भूलना चाहिए कि किसी अपेक्षा से ऐसा कहा गया है। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि अपनी पत्नी व घर को छोड़कर दूसरे शहर में दूसरी महिला से नाता जोड़ा जाये। वस्तुत: जब तक गृहस्थपने की सुविधाओं में आसक्ति है तब तक परिवार को यथायोग्य स्नेह, सम्मान एवं अधिकार प्रदान करना ही चाहिए।
व्यावहारिक जीवन में भी किसी भी घटना या कथन में छिपे हुए विचित्र अभिप्रायों को समझने का प्रयास करें तो जीवन में बहुत कुछ शान्ति एवं समृद्धि पा सकते हैं। जब हमारे रिश्तेदार या मित्र अप्रिय वाक्य बोलते हैं तब हम स्याद्वाद को याद करके उस वाक्य में छिपे हुए प्रेम या हित या अन्य मजबूरी को पहचान कर नाराज होने से या अपने ही व्यक्ति से दुश्मनी करने से बच सकते हैं। इसी प्रकार जीवन की किसी घटना में उसके तत्काल हानिकारक प्रतीत होने वाले पक्ष के साथ—साथ उसके संभावित लाभदायक उजले पक्ष पर भी विचार करें तो स्याद्वाद का दर्शन हमारे जीवन को धन्य बना सकता है।
इस भूमिका के साथ आगे के पृष्ठों में कुछ उदाहरण सारणी के रूप में दिए जा रहे हैं। सारणी के प्रथम स्तम्भ में भौतिक विज्ञान में अनेकान्तवाद सम्बन्धित उदाहरण है। दूसरे स्तम्भ में अध्यात्म से सम्बन्घित उदाहरण है।। मुख्य उद्देश्य अध्यात्म के अनेकान्तवाद को समझाने का है। अत: भौतिक विज्ञान का उदाहरण अध्यात्म की विषय वस्तु के अनुसार चुना गया है।
जैसे बाहर का छिलका सड़ा—गला हो तो अन्दर आम का रस शुद्ध एवं स्वादिष्ट नहीं रह सकता है। इसी प्रकार व्यावहारिक जीवन की पवित्रता के बिना आध्यात्मिक जीवन की श्रेष्ठता संभव नहीं है। जीवन में साम्यभाव, तनाव शैथिल्य एवं मानसिक संतुलन हेतु व्यावहारिक जीवन को भी सुधारना आवश्यक होता है। इसे ध्यान में रखते हुए प्रत्येक सारणी के तीसरे स्तम्भ में पहले एवं दूसरे स्तम्भ के अनुरूप व्यावहारिक जीवन में उपयोगी सूत्र प्राप्त किये गये हैं। तीनों स्तम्भों की विषयवस्तु अत्यन्त भिन्न होते हुए भी तीनों में तर्क की गहराई एवं तर्क की दिशा बहुत कुछ समान है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आगामी सारणियों में यह प्रयास किया गया है कि भौतिक विज्ञान से प्राप्त तर्क का उपयोग आध्यात्मिक जीवन एवं व्यावहारिक जीवन में हो सके।
श्री उमास्वामी के अनुसार, ‘सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:’ अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक््âचारित्र (की एकता) मोक्षमार्ग है। इसी को ध्यान में रखते हुए आगामी सारणियों में विषयवस्तु ऐसी चुनी है ताकि यह वर्णन सच्चा श्रद्धान (सम्यग्दर्शन), सच्चा ज्ञान (सम्यग्ज्ञान) एवं सच्चारित्र प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो।
विज्ञान | अध्यात्म | व्यावहारिक जीवन |
एक अपेक्षा से
जल द्रव रूप है। |
एक अपेक्षा से जीव मनुष्य है।….. जीव हाथी है।…….. जीव देव है।… |
एक अपेक्षा से मैं धनी हूँ। मैं गरीब हूँ। मैं अफसर हूँ। … मेरे पद के अनुरूप मुझे अपने कर्त्तव्य का पालन एवं लोकोपकार करना है व अपने में सुधार करना है। |
दूसरी अपेक्षा से | दूसरी अपेक्षा से | दूसरी अपेक्षा स |
जल न तो ठोस है, न द्रव है और न गैस है। ठोस, द्रव या गैस तो जल के कई अणुओं के समुदाय के शक्ल के नाम हैं। जैसे एक ईंट न तो मकान होती है , न दुकान होती है और न ही मालगोदाम होती है। कई ईंटें किस रूप में एकत्रित होती हैं; उसके अनुसार मकान, दुकान या मालगोदाम नाम बनता है। इसी प्रकार जल का एक अणु न तो ठोस होता है, न द्रव होता है और न गैस होता है। | जीव न मनुष्य है, न देव है, न हाथी है,……………..। मनुष्य, हाथी, देव आदि तो जीव एवं कई पुद्गल परमाणुओंके समुदाय के नाम है। | मैं न तो धनी हूं, न गरीब हूं, न अफसर हूं। ये बाहरी संयोग क्षणिक हैं। अत: इन बाहरी संयोगों के आधार पर न तो अभिमान करूं और न ही अपने को छोटा समझूं। |
विज्ञान | अध्यात्म | व्यावहारिक जीवन |
एक अपेक्षा से | एक अपेक्षा से | एक अपेक्षा से |
ऊर्जा की बचत करना चाहिए। ऊर्जा की देश में कमी है अत: ऊर्जा उत्पादन करना चाहिए। अच्छे वैज्ञानिक एवं इंजीनियर तैयार करना चाहिए जो ऊर्जा उत्पादन का कार्य कर सकें। | जीव को बचाना चाहिये। जीव की मृत्यु होती है। जीव हिंसा नहीं करना चाहिए। जीव एक दूसरे का उपकार कर सकते हैं। (परस्परोपग्रहो जीवानां) | देश व परिवार का विकास करने हेतु हमें सेवा एवं त्याग करना चाहिए। |
दूसरी अपेक्षा से | दूसरी अपेक्षा से | दूसरी अपेक्षा से |
ऊर्जा का न तो नाश होता है और न ही उत्पादन किया जा सकता है। ऊर्जा की मात्रा में कोई घट—बढ़ नहीं हो सकती है। ऊर्जा वस्तु में ही होने पर प्रकट होती है। यानी इंजीनियर या वैज्ञानिक ऊर्जा का उत्पादन नहीं कर सकते हैं। | जीव न जन्मता है और न ही मरता है। जीव को हमने बचाया है यह अहंकार न करें। हम अजर, अमर अविनाशी हैं यह श्रद्धान करके निर्भय बनें। | दूसरों की मदद करने का अहंकार न करें। |
विज्ञान | अध्यात्म | व्यावहारिक जीवन |
जिसे हम कोयले का जलना कहते हैं, उसे रसायन शास्त्र की भाषा में निम्नांकित रासायनिक क्रिया द्वारा व्यक्त करते हैं : C + O2 —CO2 + ऊर्जा भौतिक विज्ञान द्वारा इस क्रिया का विश्लेषण करें तो बड़ा विचित्र लगेगा। जरा पता लगायें की कौन जला ? कार्बन (C) में ६ प्रोटॉन, ६ न्यूट्रॉन एवं ६ इलेक्ट्रॉनथे। ऑक्सीजन के अणु (O2)में १६ प्रोटॉन, १६ न्यूटॉन एवं १६ इलेक्ट्रॉन थे। अब कार्बन डाई आक्साइड (CO2 ) में २२ प्रोट्रॉन, २२ न्यूट्रॉन एवं २२ इलेक्ट्रॉन हैं। यानी जलने के पहले भी २२ प्रोटॉन, २२ न्यूट्रॉन एवं २२ इलेक्ट्रॉन रहते हैं। तो फिर कौन जला ? इसका उत्तर यह है कि स्थूल रूप से यह कहा जा सकता है कि कार्बन जला है किन्तु सूक्ष्म रूप से जांच करने पर पता चलता है कि कोई भी कण नहीं जला है केवल विभिन्न इलेक्ट्रॉनों, प्रोट्रॉनों एवं न्यूट्रॉनों के पड़ोसी बदले हैं। अनेकान्तवाद की भाषा में जलना हुआ भी है व जलना नहीं भी हुआ है। स्याद्वाद की प्रधानता से कथन करें तो किसी अपेक्षा पदार्थ जलता है किसी अपेक्षा नहीं जलता है। |
उमास्वामी ने बताया है कि- सत् द्रव्य लक्षणं। उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत्। अर्थात् द्रव्य में उत्पाद एवं नाश होते हुए भी द्रव्य का ध्रुवत्व बना रहता है। जन्म, मृत्यु भी एक सच्चाई है तो आत्मा की अजरता—अमरता भी एक परम सच्चाई है। न केवल आत्मा अपितु जड़ भी इसी अपेक्षा अजर अमर है। |
कई नुकसान ऐसे होते हैं जो कई लाभ के दरवाजे भी खोलते हैं। कुछ आधुनिक विद्वान् यहाँ तक स्वीकारते हैं कि हर हानि में लाभ का बीज दिखता रहता है। (within every adversity there is a seed of an equivalent or greater benefit) |
विज्ञान | अध्यात्म | व्यावहारिक जीवन |
ट्रांजिस्टर (रिसीवर) कई छोटे-छोटे—छोटे पुर्जों से मिलकर बना होता है। यदि सभी पुर्जे ठीक हों व सही ढंग से जुड़े हों व उचित बैटरी लगी हो तो उससे किसी रेडियो स्टेशन का प्रोग्राम सुन सकते हैं। ट्रांजिस्टर के चालू करने पर उससे लता मंगेशकर के कंठ की आवाज जो सुनाई देती है उसके बारे में निम्नांकित कथन बन सकते हैं— | शरीर भी ट्रांजिस्टर की तरह है। आत्मा को नकारने वाले सारा श्रेय ट्रांजिस्टर को ही देते हैं। रेडियो स्टेशन की तरंगों की तरह आत्मा की उपस्थिति अध्यात्मवादी स्वीकारता है। | हमें यह समझ में आना चाहिए कि जो कुछ भी घटित होता है उसका श्रेय किसे वे कितना दें। जैसे प्रस्तुत विषय विवेचन का श्रेय ऐसे कई पूर्व विद्वानों व मनीषियों को भी है जिनसे या जिनके ग्रंथों से यह विषय ग्रहण किया गया है। इसी तरह शरीर के जनक, परिवार के सदस्य, स्याही, स्याही के निर्माता…… आदि सभी सहयोगियों पर विचार करें तो सबका योगदान इस विषय के प्रस्तुतीकरण में समाविष्ट है। |
१. आवाज ट्रांजिस्टर के पुर्जों से निकल रही है। उसमें गायिका लतामंगेशकर को श्रेय बिल्कुल नहीं है। यदि ट्रांजिस्टर का एक भी पुर्जा खराब हो जाये तो गाना सुनाई नहीं देगा। | ||
२. आवाज गायिका लता मंगेशकर की है। उसमें ट्रांजिस्टर को श्रेय नहीं है। यदि वह गाना रेडियो स्टेशन से रिले नहीं होता व उस गाने की तरंगे ट्रांजिस्टर में प्रवेश न करतीं तो ट्रांजिस्टर कितना ही अच्छा क्यों न हो उससे वह गाना नहीं निकलता। | ||
३. ट्रांजिस्टर के बजने में श्रेय ट्रांजिस्टर को भी है व रेडियो स्टेशन की तरंगों को भी है। |
विज्ञान | अध्यात्म | व्यावहारिक जीवन |
हाइड्रोजन के एक परमाणु में एक प्रोटॉन एवं एक इलेक्ट्रॉन होता है (चित्र क्रं.२) इसके बारे में निम्नांकित कथन बन सकते हैं : | संसारी जीव के साथ कर्म होते हैं। किसी अपेक्षा यह कहा जा सकता है कि आत्मा ने कर्म बांधे हैं या कर्मों ने आत्माको बांधकर संसार में रोक रखा है। | हम अपने आपको कई बंधनों से जकड़ा अनुभव करते हैं। यह मानकर कि समय की कमी है, धन की कमी है, साधनों की कमी,….. इत्यादि। बंधन हमारे जीवन में हम इतने अधिक मान लेते हैं कि हम इन कमियों से जकड़ा हुआ सा अनुभव करते हैं। |
१. इलेक्ट्रान प्रोटॉन से बंधा हुआ है या प्रोटॉन इलेक्ट्रॉन से बंधा हुआ है। दोनों एक-दूसरे से बँधे हुए हैं व हाइड्रोजन परमाणु की दृष्टि में प्रोटॉन एवं इलेक्ट्रॉन दोनों एक साथ होने से उनके धन एवं ऋण आवेश जुड़ जाने से हाइड्रोजन परमाणु का कुल आवेश शून्य बन गया है। | वस्तुत: दोनों ने एक दूसरे का का कुछ नहीं बिगाड़ा है। आत्मा का एक प्रदेश भी कर्म परमाणुओं एवं शरीर के साथ रहने से कम ज्यादा नहीं होता है। आत्मा की शक्ति में कोई कमी नहीं आती है व वह न्यारा का न्यारा है। | कभी विपरीत रूप से भी विचार किया जा सकता है कि मेरे पास कितना समय है या कितना धन है या कितने साधन हैं। ज्यों ही हम इस दिशा में सोचना शुरु करेंगे हमें ऐसा लग सकता है कि आगे बढ़ने एवं लोकोपकारी सत्कार्य करने हेतु हमारे पास बहुत कुछ है। |
२. इलेक्ट्रॉन की दृष्टि में प्रोटॉन उसका पड़ोसी है। इलेक्ट्रॉन का ऋण आवेश थोड़ा भी नहीं बदला है। कॉम्पटन विवर्तन (Compton rcattering) जैसे प्रयोग द्वारा इलेक्ट्रॉन की स्वतंत्रता सिद्ध होती है। | इस शक्ति को पहचानकर पुरुषार्थ करने पर आत्मा की शक्ति प्रकट हो सकती है। यानी आत्मा को पृथक् पहचानकर मुक्त किया जाना संभव है। | आज के मनोवैज्ञानिक कई समस्याएँ इसी सिद्धान्त द्वारा हल करते हैंं जहाँ दो के बीच लड़ाई हो तो प्रेम का अस्तित्व दर्शाते हैं व साधन या समय की कमी की भावना से ग्रस्तता हो तो इनकी प्रचुरता का एहसास कराते हैं |
३. इलेक्ट्रॉन की तरह प्रोटॉन की दृष्टि में प्रोटॉन भी स्वतंत्र है व उसका धन आवेश थोड़ा भी नहीं बदलता है। नाभिकीय संलयन (nuclearfusion) जैसी क्रियाओं में प्रोटॉन इस प्रकार व्यवहार करता है जैसे इलेक्ट्रॉन से वह स्वतंत्र है। |
(अ) हाइड्रोजन परमाणु एक प्रोटॉन एवं एक इलेक्ट्रॉन से मिलकर बना होता है।
(ब) मोती का हार मोती एवं धागे से मिलकर बना है। (हार की अपेक्षा मोती एवं धागा हार के ही अनिवार्य एवं साथ रहने वाले अवयव है। किन्तु मोती की अपेक्षा मोती धागे से पृथक् है। धागे की अपेक्षा धागा मोती से पृथक् है। इसी प्रकार हाइड्रोजन परमाणु की अपेक्षा प्रोटॉन एवं इलेक्ट्रॉन इस परमाणु के अनिवार्य एवं साथ में रहने वाले अवयव हैं। हाइड्रोजन परमाणु का विद्युत आवेश शून्य है। किन्तु इसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन की अपेक्षा इलेक्ट्रॉन का ऋणात्मक आवेश है तथा वह प्रोटॉन से पृथक् है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य की अपेक्षा आत्मा एवं शरीर साथ हैं किन्तु आत्मा की अपेक्षा आत्मा शरीर से पृथक् है।)
विज्ञान | अध्यात्म | व्यावहारिक जीवन |
एक अपेक्षा से | एक अपेक्षा से | एक अपेक्षा से |
गंदा पानी नहीं पीना चाहिए। पानी में गन्दे पदार्थ मिल जाने से पानी अशुद्ध हो जाता है। | अपनी आत्मा को मलिन नहीं बनाना चाहिए। बुरे कार्यों से डरना चाहिए। | |
दूसरी अपेक्षा से | दूसरी अपेक्षा से | दूसरी अपेक्षा से |
जिसे हम गंदा पानी कह रहे हैं वह पानी एवं अन्य पदार्थों का संयोग हैं इस तथा कथित गंदे पानी में भी जो पानी उसका अणु (प्२ध्) वैसा ही है जैसा की शुद्ध पानी का अणु। पानी का अणु चाहे स्वच्छ पानी का लें या गन्दी नाली का, दोनों अणु एक जैसे ही होंगे। पानी के अणु में गंदगी का अणु प्रवेश नहीं करता है। | आत्मा तो सभी वासनाओं एवं बुराइयों से परे है। ये वासनाएँ आत्मा के साथ होते हुए भी पृथक््â हैं। आत्मा संसार में भ्रमण कर रही है किन्तु आत्मा की पवित्रता ज्यों की त्यों है। उसमें कोई कमी नहीं हुई है। | ‘पाप से घृणा करो, पापी से नहीं’। यह कथन निराधार नहीं है। |
विज्ञान | अध्यात्म | व्यावहारिक जीवन |
प्रकाश कण रूप होता है या तरंग की तरह है ? न्यूटन के समय से ही इसका उत्तर खोजा जा रहा है। विवाद भी रहा है। आज क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर यह माना जाता है कि विवाद हल हो गया है। यद्यपि प्रकाश का स्वरूप हम समझ गये हैं किन्तु साथ ही यह भी समझ गये हैं कि इसका स्वरूप शब्दों एवं चित्रों से परे है। हम यह जान गये हैं कि प्रकाश कण रूप भी है व तरंग रूप भी है, दोनों रूप भी है व दोनों रूप नहीं भी है। प्रकाश कदाचित् अवक्तव्य भी है। | आत्मा वैâसा है ? उसके विभिन्न प्रदेश किस प्रकार आपस में जुड़े हुए हैं कि आत्मा अखण्ड है ? ज्ञान, सुख आदि कई गुण किस प्रकार आत्मा में सर्वत्र एक साथ व्याप्त हैं ? आत्मा में रूप नहीं है, रस नहीं है, गन्ध नहीं है, स्पर्श नहीं है तो इसे वैâसे समझा जाये ? | एक ही व्यक्ति के दो विरोधी रूप हमें जब दिखाई देते हैं तो हम कई बार परेशान हो जाते हैं। करोड़ों के दानी को भी कभी हम इस रूप में पा सकते हैं कि वह व्यक्ति कंजूस लगे। अत: परेशानी से बचने के लिए किसी भी व्यक्ति पर ऐसे स्थायी लेबल नहीं लगाना चाहिए कि अमुक व्यक्ति महादानी है या अमुक व्यक्ति महाकंजूस है। आज के मनोवैज्ञानिक भी ऐसे लेबल लगाने को बहुत बड़ी गलती बताते हैं। |
यही बात इलेक्ट्रॉन आदि अन्य सूक्ष्म कणों के बारे में कही जा सकती है। |
इन प्रश्नों के उत्तरों से अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह जानना है कि आत्मा का विभिन्न परिस्थितियों में व्यवहार क्या है। चींटी में आत्मा चींटी के आकार की तो वही आत्मा हाथी में हाथी के आकार की हो जाती है। यह जानना आत्मा के व्यवहार को जानने का एक उदाहरण है। | अत: कोई व्यक्ति क्षमाशील है या क्रोधी है ऐसे प्रश्न के बदले महत्वपूर्ण यह जानना है कि किन परिस्थितियों में अमुक व्यक्ति के क्रोधी होने की संभावना अधिक है, व किन परिस्थितियों में अमुक व्यक्ति के शान्त बने रहने की संभावना है। |
इस स्थिति से वैज्ञानिक अब परेशान नहीं भी हैं। वैज्ञानिक यह कहते हैं कि इसका उत्तर महत्त्वपूर्ण नहीं है कि प्रकाश क्या है ? महत्त्वपूर्ण यह जानना है कि किस परिस्थिति में प्रकाश क्या व्यवहार करेगा। | ‘आत्मा बाहरी पदार्थों से ध्यान हटाकर आत्मा में लीन हो जाये, तो आत्मा के साथ रहने वाले दु:ख, वासनाओं आदि का क्षय हो जाता है। यह जानना भी आत्मा के व्यवहार को जानने का एक उदाहरण है। |
विज्ञान | अध्यात्म | व्यावहारिक जीवन |
लोहा पानी में तैरता भी है (उदाहरण—जहाज) एवं लोहा पानी में डूबता भी है (उदाहरण—लोहे की कील)। | शरीर आत्मा के पतन में भी सहायक हो सकता है व वही शरीर आत्मा के विकास में भी सहायक हो सकता है। | लाभ समझकर किसी वस्तु में बहुत आसक्त भी रहे हैं तो कुछ क्षण के लिये उसका दूसरा पक्ष भी विचार करें। इसी प्रकार जिसे हानिकारक समझकर बहुत नफरत कर रहे हों तो उसका भी दूसरा पक्ष सोचकर साम्यभाव धारण करने का प्रयास करें। |
इसी प्रकार (दूरी के आधार पर) एक प्रोटॉन दूसरे प्रोटॉन को अपनी ओर आकर्षित भी करता है एवं प्रतिकर्षित भी करता है। |
उपर्युक्त सारणियों के वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि अनेकान्तवाद या स्याद्वाद शब्दों का विकास मात्र न होकर एक ऐसी शैली है जिसके बिना किसी भी पदार्थ का सच्चा स्वरूप स्पष्ट नहीं हो सकता है। हम क्या हैं ? यदि शरीर जीव नहीं है व आत्मा अजर अमर है तो फिर प्राणीरक्षा एवं प्राणिबध में पुण्य—पाप क्यों ? ऐसे कई प्रश्न जिज्ञासु के मस्तिष्क में आते हैं जिनका उत्तर अनेकान्तवाद के बिना संभव नहीं होता है। यही कारण है कि हमारे आचार्यों ने कई दृष्टिकोणों (नयों) से पदार्थ का स्वरूप समझाया है। कुछ महत्त्वपूर्ण नयों के नाम इस प्रकार हैं—नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, एवंभूत, निश्चय, व्यवहार, परमशुद्ध निश्चयनय, शुद्ध निश्चयनय, अशुद्ध निश्चयनय, सद्भूत अनुपचरित व्यवहारनय, सद्भूत उपचरित व्यवहार नय, असद्भूत अनुपचरित व्यवहारनय, असद्भूत उपचरित व्यवहारनय, आदि) एक तरफ वासनाएं एवं शरीर को भी आत्मा का नहीं माना है तो दूसरी तरफ असद्भूत उपचरित व्यवहार नय से पत्नी, मकान आदि से भी जीव का रिश्ता जोड़ा है अन्यथा स्वपत्नी—परपत्नी एवं सम्पत्ति—पर संपत्ति में भेद ही नहीं रहता। बहुत ही नाप—तौल की भाषा बोलने वाले भौतिक विज्ञान में भी कई स्थानों पर विरोधाभास प्रतीत होता है जिन्हें उपर्युक्त सारणियों में विस्तार से कुछ उदाहरणों द्वारा समझाया गया है।
एक सावधानी अनेकान्तवाद के सम्बन्ध में यह भी रखना आवश्यक है कि मिथ्या अनेकान्तवाद से बचकर सम्यक््â अनेकान्तवाद अपनाना चाहिये। जैसे एक तरफ किसी व्यक्ति को सभी का मामा ही मान लेना मिथ्या एकान्त होगा क्योंकि वह व्यक्ति किसी का बेटा भी है तो किसी का पौत्र भी है…….। किन्तु यदि अनेकान्त को हम इतना मनमाने ढंग से खींच लें कि हम कहने लगें कि एक ही व्यक्ति किसी का पिता भी होना चाहिए व किसी का पति भी होना चाहिये तो अविवाहित व्यक्ति के लिय ऐसा अनेकान्तवाद मिथ्या अनेकान्तवाद होगा। ऐसा मिथ्या अनेकान्त त्याज्य है। अत: चाहे भौतिक विज्ञान हो चाहे अध्यात्म, अनुभव, प्रमाण एवं तर्क से यह भी सन्तुष्ट कर लेना चाहिए कि वर्णित अनेकान्त मिथ्या अनेकान्त तो नहीं है।