प्रश्न-अनेकांत की व्याख्या क्या है ?
उत्तर – प्रत्येक वस्तु में अनंत धर्म हैं, उनमें से किसी एक धर्म को कहते समय नय की अपेक्षा रखना व उसके विरोधी धर्म को भी स्वीकार करना अनेकांत है। जैसे जीव नित्य है, द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से। जीव अनित्य है, पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से जो किसी का पुत्र है, व पिता भी है। अपने पुत्र का पिता है व पिता का पुत्र है आदि।
प्रश्न-संसार में सभी के कथन को या मत को किसी भी अपेक्षा स्वीकार करना अनेकांत है क्या ?
उत्तर – नहीं, जैसे अनेक विषकण मिलकर अमृत नहीं बनते हैं, वैसे ही सभी के कथन या मत मिलकर अनेकांत नहीं बनता है। जैसे-कथंचित् रात्रिभोजन धर्म है कथंचित् रात्रिभोजन अधर्म है, ऐसी अनेकांत की व्याख्या नहीं है। दूसरा उदाहरण-जैसे-कथंचित् दिगम्बर मुद्रा से ही मोक्ष है, कथंचित् वस्त्रधारी या श्वेताम्बर अथवा अन्यलिंगी साधु वेष से मोक्ष है, ऐसा अनेकांत जैनशासन में मान्य नहीं है। इसीलिए राजवार्तिक ग्रंथराज में श्री अकलंकदेव ने कहा है कि-एकांत भी दो प्रकार का है सम्यक्-एकांत व मिथ्याएकांत। ऐसे ही अनेकांत भी दो प्रकार का है-सम्यक् अनेकांत और मिथ्या अनेकांत। दिगम्बर मुद्रा से ही मोक्ष है यह सम्यक् एकांत है। रात्रिभोजन त्याग ही धर्म है यह सम्यक् एकांत है इत्यादि। आज कोई बलि में धर्म मानते हैं, कोई मांसाहार व मदिरापान में धर्म मानते हैं। ये सभी मत जैनशासन मे मान्य नहीं है। इनमें अनेकांत नहीं लगेगा। कोई सम्प्रदाय दिन में भोजन त्याग कर रात्रि में भोजन करके व्रत खोलते हैं। इसमें भी अनेकांत नहीं लगेगा।