● राजा साहब का मुख्य व्यवसाय अनेक छोटी-बड़ी के साथ लेन-देन और साहूकारी का था। आप बड़े धर्माम ५२ मन्दिरों के निर्माता, निरभिमानी, उदार और दानी सजन थे।
● अनेक अभावग्रस्त साधर्मी बन्धुओं को यथोचित सहायता देकर उनका स्थितिकरण करने की गुप्तदान देने की, सामाजिक मर्यादाओं और नैतिकता को प्रोत्साहन देने की, निज की ख्याति मान से दूर रहने आदि की अनेक किंवदन्तियाँ उनके सम्बन्ध से प्रचलित हैं।