मार्ग और अवस्थिति-श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अन्देश्वर पार्श्वनाथ ’ राजस्थान प्रदेश के बाँसवाड़ा जिले की कुशलगढ़ तहसील में है। समीप का रेलवे स्टेशन पश्चिमी रेलवे का उदयगढ़ है यहाँ से ५० किमी. है। यह क्षेत्र दाहोद से उत्तर की ओर ५० किमी., कुशलगढ़ से पश्चिम की ओर १५ किमी. तथा कलिंजरा से पूर्व की ओर ८ किमी. दूर है। यह कुशलगढ़ और कलिंजरा के मध्य है, नियमित बस सेवा है। बस मंदिर के आगे ही रुकती है। इसका पोस्ट ऑफिस कुशलगढ़ है। यह क्षेत्र एक छोटी-सी पहाड़ी पर है। चारों ओर सघनवन है।
क्षेत्र का इतिहास- इस क्षेत्र के संबंध में अनेक िंकवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहते हैं, एक भील किसान एक बार अपने खेत में हल चला रहा था। अकस्मात् उसका हल पत्थर से टकराया। किसान ने उस पत्थर को प्रयत्नपूर्वक निकाला। किन्तु उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वह साधारण पाषाण नहीं है, बल्कि पाषाण के भगवान हैं। भगवान ने साक्षात् दर्शन दिये हैं, इस विश्वास से वह भगवान के सामने भक्ति से नृत्य करने लगा। धीरे-धीरे यह समाचार उसके परिवार और जाति वालों को भी मालूम हुआ। अबोध भक्तों का वहाँ मेला लग गया। सबने भगवान के ऊपर तेल-सिंदूर पोतकर खूब भक्ति की। प्रतिदिन ये लोग इसी प्रकार भगवान की भक्ति करके रिझाने लगे। भगवान का स्थान भी एक खेजड़े के वृक्ष के नीचे बन गया। एक दिन कलिंजरा के श्री भीमचंद महाजन को स्वप्न आया। दूसरे दिन महाजन यहाँ पहुँचा, दर्शन किये, अभिषेक किया। यह समाचार दिगम्बर जैन समाज को भी ज्ञात हुआ। जैन लोग यहाँ आये और छोटा सा मंदिर बनवाकर उसमें मूर्ति को विराजमान कर दिया। धीरे-धीरे अन्देश्वर पार्श्वनाथ की प्रसिद्धि सारे बागढ़, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्त में फैल गई। फलत: जनता अधिकाधिक संख्या में आने लगी।
अतिशय- भगवान पार्श्वनाथ की उपर्युक्त मूर्ति के अतिशयों के संबंध में लोगों में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैंं कहते हैं, एक बार चोरों ने चाँदी के किवाड़ उतार लिये और उन्हें लेकर चल दिये। लेकिन वह अंधे और पागल हो गये और इधर-उधर घूमकर एक ओर छिपने का प्रयास करते रहे मगर उनका प्रयास विफल रहा और सब माल पीछे वापस आया। एक बार उन्होंने फिर प्रयत्न किया और अबकी बार तिजोड़ी खोलकर रुपये निकाल लिये। किन्तु इस बार वे जा नहीं सके, वे अंधे हो गये और यहीं पर पास के जंगल में भटकते रहे। मूर्ति के अतिशय से प्रभावित होकर अनेक जैन और जैनेतर व्यक्ति यहाँ मनोकामना लेकर आते हैं।
क्षेत्र-दर्शन- यह क्षेत्र पहाड़ के ऊपर जंगल में है। यहाँ कोई बस्ती नहीं है, केवल दो दिगम्बर जैन मंदिर और धर्मशाला हैं। दोनों ही मंदिर पार्श्वनाथ मंदिर कहलाते हैं। एक मंदिर कुशलगढ़ की श्री दिगम्बर जैन पंचायत ने बनवाया था। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९६५ में हुई थी। भगवान पार्श्वनाथ की श्यामवर्ण चमत्कारिक मूर्ति इसी मंदिर में विराजमान है। दूसरा मंदिर कुशलगढ़वासी श्री हीराचंद महाजन ने बनवाया था, जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १९९२ में हुई थी। इनमें पहला मंदिर ही बड़ा मंदिर कहलाता है। बड़े मंदिर में गर्भगृह और सभामण्डप है। उसके आगे सहन है। मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की १ फुट ८ इंच ऊँची कृष्ण पाषाण की पद्मासन प्रतिमा है। प्रतिमा के ऊपर सप्त फणावली है। यह प्रतिमा एक शिलाफलक में है। भगवान के सिर के ऊपर तीन छत्र हैं। उनके ऊपर दुन्दुभिवादक हैं। उनके ऊपर भी पाँच पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं। इनके दोनों पाश्र्वों में आकाशचारी देव और गज हैं। फण के पाश्र्वों में मालाधारी गन्धर्व हैं। उनसे नीचे दोनों ओर खड्गासन मूर्तियाँ हैं। इस मूर्ति के ऊपर कोई लेख नहीं है। यह मूर्ति इसी स्थान पर निकली थी। कहते हैं, जब इस मूर्ति को बाहर मंदिर में विराजमान करने के लिए ले जाना चाहा तो वह उठाये न उठी। तब उसी स्थान पर दूसरा मंदिर बनाया गया। यह मूर्ति अनुमानत: १२-१३वीं शताब्दी की प्रतीत होती है। इस मूर्ति के अतिरिक्त वेदी पर पाषाण की ८ और धातु की ९ मूर्तियाँ और भी विराजमान हैंं। इस मंदिर से आगे सड़क के किनारे दूसरा मंदिर है। इसमें भगवान पार्श्वनाथ की २ पुâट ७ इंच अवगाहना वाली कृष्ण पाषाण की पद्मासन मूर्ति विराजमान है। यह ९ फण वाली है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९९२ में हुई थी। इसके अतिरिक्त वेदी पर ८ पाषाण की और १० धातु की मूर्तियाँ भी हैं। दोनों ही मंदिर शिखरबन्द हैं।
धर्मशाला- क्षेत्र पर दिगम्बर जैन धर्मशाला है। मंदिर से लगभग १०० गज दूर एक तालाब के निकट कुआँ है। जल-पूर्ति के लिए यही एकमात्र साधन है। क्षेत्र नागरिक कोलाहल से दूर एकान्त और शान्त वातावरण में अवस्थित है।
व्यवस्था- व्यवस्था की दृष्टि से यह निर्णय किया गया कि अन्देश्वर कलिंजरा के निकट है, परन्तु तत्कालीन कुशलगढ़ स्टेट में होने से तथा बांसवाड़ा-कुशलगढ़ स्टेटों के बीच सीमा-विवाद होने के कारण कलिंजरा के मार्ग से सामान पहुँचाना कठिन था। अत: क्षेत्र की व्यवस्था का भार दिगम्बर जैन समाज कुशलगढ़ को दिया गया।
वार्षिक मेला- क्षेत्र का वार्षिक उत्सव कार्तिक पूर्णिमा को होता है। इसी दिन अन्देश्वर पार्श्वनाथ प्रगट हुए थे। घोडा भीमचन्द को स्वप्न दिया था। अत: तभी से प्रथम ध्वजारोहण घोडा भीमचंद एवं उनके वंशजों द्वारा ही किया जाता है जो अब तक कायम है।
सन् १९७४ के पश्चात्- वर्तमान में श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अन्देश्वर पार्श्वनाथ कुशलगढ़ की सम्पूर्ण व्यवस्था और देखरेख समस्त दि. जैन पंच महाजन दशाहूमड़ बीसपंथी कुशलगढ़ (राज.) के अधीन है। व्यवस्था कमेटी द्वारा मुख्य सड़क से क्षेत्र तक डामरीकरण तथा यात्रियों के आवागमन हेतु बसों में आने-जाने की व्यवस्था कराई गई है। इस क्षेत्र पर नल, बिजली एवं आवास व्यवस्था हेतु विशाल धर्मशाला का निर्माण करवाया गया है जिसमें समस्त आवासीय सुविधाएँ यात्रियों के लिए उपलब्ध कराई गई हैं। अतिशय क्षेत्र में अतिशय पार्श्वनाथ मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, शांति, कुंथु, अरहनाथ का कांच मंदिर, सवा ग्यारह फुट ऊँची १०८ फण युक्त पार्श्वनाथ की खड्गासन मूर्ति एवं अर्धचन्द्राकार में निर्मित पार्श्वनाथ जिनालय है। क्षेत्र के दो मंदिरों में आध्यात्मिक चित्रयुक्त आकर्षक रंगीन काँच से कलाकृति का कार्य करवाया गया है। क्षेत्र में संगमरमरयुक्त ४१ फुट ३ इंच ऊँचे विशाल मानस्तंभ का निर्माण करवाया गया है। साथ ही विशाल खड्गासन त्रिमूर्ति (भरत-बाहुबली-आदिनाथ) की मूर्तियों की स्थापना हेतु वेदियों का निर्माण कार्य योजनापूर्वक ढंग से करवाया जा रहा है। इस प्रकार व्यवस्थापक कमेटी के सुनियोजित नेतृत्व में यह क्षेत्र निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर है। क्षेत्र मंदिर प्रांगण में अति रमणीय बगीचा का निर्माण किया गया है। मेला तेरस से लेकर पूर्णिमा तक त्रिदिवसीय होता है। पुरातन विभाग द्वारा जिस मूर्ति को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी भारतवर्ष में एकमात्र अन्देश्वर पार्श्वनाथ के फण के ऊपर पंच बालयति भगवान की मूर्ति विराजमान है। सन् २००६ में भी यहाँ चमत्कार हुआ है। अन्देश्वर के करीब ४ या ५ मील की दूरी पर जैनेतर क्षेत्र मंगलेश्वर है। वहाँ के भग्नावशेष हमें अपनी प्राचीनता और जैनत्व का पूरा-पूरा प्रमाण देते हैं, वहाँ से लगाकर अन्देश्वर तक अनेकों जैनत्व के भग्नावशेष पाये जाते हैं तथा वहाँ की कुछ खण्डित किन्तु मनोहर जैन मूर्तियाँ कुशलगढ़ पुलिस स्टेशन में आज भी मौजूद हैं, जिसकी कलात्मक रचना बहुत ही मनोरम है।
क्षेत्र पर अन्य सुविधाएँ- क्षेत्र पर कुल २५ कमरे हैं, जिसमें १० डीलक्स हैं। २ हॉल हैं जिसमें १००-२०० यात्री ठहर सकते हैं। भोजनशाला नियमित और रियायती शुल्क पर है। विद्यालय शासकीय है।