एको मे शाश्वत आत्मा, ज्ञानदर्शनसंयुत:।
शेषा मे बाह्या भावा:, सर्वे संयोगलक्षणा:।।
—समणसुत्त : ५१६
ज्ञान और दर्शन से संयुक्त मेरी एक आत्मा ही शाश्वत है। शेष सब अर्थात् देह तथा रागादि भाव तो संयोग लक्षण वाले हैं—उनके साथ मेरा संयोग संबंध मात्र है। वे मुझसे अन्य ही हैं।