(दीक्षा के अनंतर अन्य समय में केशलोंच करने की क्रिया) लोचो द्वित्रिचतुर्मासैर्वरो मध्योऽधम: क्रमात्। लघुप्राग्भक्तिभि: कार्य: सोपवासप्रतिक्रम:।।
अथ लोचप्रतिष्ठापनक्रियायां………सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं (९ बार णमोकार मंत्र का जाप्य करके) ‘तवसिद्धे’ इत्यादि लघु सिद्धभक्ति पढ़ें।अथ लोचप्रतिष्ठापनक्रियायां……..योगिभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं (९ बार णमोकार मंत्र का जाप्य करके) ‘‘प्राभृटकाले’’ इत्यादि लघु योगिभक्ति पढ़ें।
अनन्तरं स्वहस्तेन परहस्तेनापि वा लोच: कार्य: अर्थात् आपके हाथ से अथवा दूसरे से केशलोंच करावें। पुन: केशलोंच समाप्त होने पर पढ़ें-
अथ लोचनिष्ठापनक्रियायां……….सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं-
(‘तवसिद्धे’ इत्यादि पढ़ें) अनन्तरं प्रतिक्रमणं कर्तव्यम्।
अर्थ – दो महीने से उत्तम, तीन महीने से मध्यम व चार महीने से लोच करना जघन्य कहलाता है। उपवास और प्रतिक्रमण सहित लघु सिद्ध व लघु योगिभक्तिपूर्वक लोच करके पुन: लघु सिद्धभक्तिपूर्वक निष्ठापन करना चाहिए। अर्थात् जहाँ तक बने वहाँ तक चतुर्दशी प्रतिक्रमण के दिन ही लोच करें। यदि अन्य दिन में करें तो लुञ्च संबंधी प्रतिक्रमण को करना चाहिए। दैवसिक प्रतिक्रमण क्रिया ही लुञ्च प्रतिक्रमण में बताई है क्योंकि गोचार और लोच प्रतिक्रमण दैवसिक में ही गर्भित होते हैं, ऐसा वचन है। लोच प्रयोग विधि में ‘‘लोच प्रतिष्ठापनक्रियायां’’ इत्यादि रूप से दोनों भक्ति पढ़कर ‘‘स्वहस्तेन परहस्तेन वा लोच: कार्य:’’ लोच करके लघु सिद्धभक्तिपूर्वक ‘‘लोच निष्ठापन क्रियायां’’ इति प्रयोग विधि से निष्ठापन करें।