पांडुक वन में आग्नेय दिशा में उत्तर-दक्षिण दीर्घ और पूर्व-पश्चिम में विस्तीर्ण रजतमयी पांडुकंबला शिला है। उसका सारा वर्णन पांडुकशिला के समान है। इस शिला पर सौधर्म इंद्र पश्चिम विदेह के तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं।
नैऋत्य दिशा में ‘रक्ताशिला’ नामक सुवर्णमयी शिला है, जो पूर्व-पश्चिम में दीर्घ और उत्तर में विस्तृत है इसकी भी ऊँचाई आदि पांडुकशिला के सदृश है। यहाँ पर इंद्र ऐरावत क्षेत्र में उत्पन्न हुये तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं।
वायव्य दिशा में उत्तर-दक्षिण दीर्घ और पूर्व-पश्चिम विस्तीर्ण ‘रक्त- कंबला’ नामक लाल वर्ण वाली शिला है, इसका वर्णन भी पूर्ववत् है। इस शिला पर इंद्र पूर्व विदेह के तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं।