महारानी यशस्वती ने भरत के बाद २. ऋषभसेन, ३. अनंतविजय,
४. अनंतवीर्य, ५. अच्युत, ६. वीर, ७. वरवीर आदि निन्यानवें पुत्रों को जन्म दिया है ऐसे भरत सहित सौ पुत्रों को एवं ब्राह्मी पुत्री को जन्म दिया है।
महारानी सुनंदा ने कामदेव पद को सुशोभित करने वाले ऐसे बाहुबली पुत्र को जन्म दिया एवं सुंदरी कन्या को जन्म दिया है।
भगवान ऋषभदेव के १०१ पुत्र एवं ब्राह्मी-सुंदरी ऐसी दो कन्याएं थीं।
‘जो कहते हैं तीर्थंकर के पुत्री होना हुंडावसर्पिणी का दोष है आदि’’। यह बात सर्वथा गलता है। वर्तमान के चौबीस तीर्थंकरों में से १. श्री वासुपूज्य, २. मल्लिनाथ, ३. नेमिनाथ, ४. पार्श्वनाथ और ५. महावीर स्वामी। ये पाँच बालब्रह्मचारी रहे हैं, शेष उन्नीस तीर्थंकरों ने विवाह किये हैं तो क्या सभी के पुत्र ही जन्में होंगे, पुत्रियाँ नहीं। श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ ये तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती हुए हैं। इनके ९६ हजार रानियाँ थीं, तो क्या सभी के पुत्र ही हुए थे, पुत्रियाँ नहीं ? ऐसा कथमपि संभव नहीं है। केवल पुत्रों के जन्म लेने से पुत्रियाँ न होने से व्यवस्था ही नही बनेगी।
इसलिए यह सभी किवदंतियाँ सर्वथा गलत है, ऐसा श्री आचार्य वीरसागर जी महाराज कहा करते थे।