कौशांबीपुरी के राजा सिंहरथ की रानी का नाम विजया था। वहाँ पर एक तापसी था, जो भूमि का स्पर्श न करते हुये छींके पर बैठकर पंचाग्नि तप करता रहता था। उस नगर में प्रतिदिन बहुत चोरियाँ हो रही थीं। एक कुशल ब्राह्मण एक समय सायंकाल में उस तपस्वी के आश्रम में पहुँच गया। बहुत कुछ मना करने पर भी उसने कहा कि मैं अंधा हूँ। लोगों ने उसे रात्रि में रहने दिया। तब उसने रात्रि में देखा कि यह तापसी गांव में जाकर अपने साथियों के साथ चोरी करके बहुत सा धन लाया और गुफा में एक गहरा कुंआ बना रखा था, उसमें सब धन रख रहा था। प्रात: उस ब्राह्मण ने यह सारी घटना कोतवाल को सुना दी। कोतवाल ने उस तापसी को पकड़कर चोर घोषित कर राजा के द्वारा दण्डित कराया।