साहित्य शृँखला को क्रम-क्रम से आगे बढ़ाते हुए पूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी ने सन् १९८६ में अभय गीतांजलि का प्रथम पुष्प लिखकर प्रदान किया। इसमें सर्वप्रथम मंगलाचरण करते हुए लिखा है-
चौबीसों जिनदेव को, नमन करूँ शत बार।
सरस्वती वाणी अमल, वंदूँ बारम्बार।।१।।
सब गुरुवर को नमन कर, शांतिसिंधु शिरनाय।
धर्म सिंधु गुरु ज्ञानमती को, नमूँ वचन मन काय।।
इसमें पूज्य माताजी ने पंचपरमेष्ठी की मंगल स्तुति, गुरु की शिक्षा, सरस्वती वंदना, स्याद्वाद वंदना, दहेज दानव का चमत्कार, वृद्धा का वैराग्य, बड़ा उड़द की कहानी, नेमि राजुल का वार्तालाप, रक्षाबंधन, अक्षय तृतीया, अलौकिक स्तुति, बगुला भक्ति आदि अनेक विषयों पर बहुत अच्छी तरह से सरल भाषा में भजन, काव्य के माध्यम से प्रस्तुति की है। बड़ा उड़द की कहानी का एक नमूना देखिए-
दृष्टांत रूप में उड़द-बड़ा का, गुप्त रहस्य बताती हूँ।
सब सुनकर के हर्षित होंगे, इस बड़ा की याद दिलाती हूँ।।
तप की घन चोंट सहन करके, मानव महान बन जाते हैं।
संसार बड़ा वैâसे बनता, भगवान स्वयं बतलाते हैं।।
इसके साथ ही विधान की एवं भगवन्तों की मंगल आरती, गुरु भक्ति, मृत्यु महोत्सव, करनी का फल और सुभाषित नीति को लिखकर भक्तों को भक्ति करने का सुअवसर प्रदान किया है।
श्री भक्तामर काव्य पद्यावली एवं मण्डल विधान