१.प्रकृति ने इस जीव जगत में मनुष्य को सबसे श्रेष्ठ जीव बनाया है तथा धर्ममय एवं सुखमय जीवन भोग करने के लिये बहुत कुछ दिया है। अत: मनुष्य को इस शरीर के द्वारा दूसरे प्राणियों की रक्षा करते हुए हर तरह से सेवा करे एवं समस्त प्राणियों को तकलीफो से बचाने की कोशिश करते रहें। इसलिए मनुष्य को २४ घंटे में २४ मिनट समय निकाल कर (सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन के माध्यम से) स्वस्थ शरीर द्वारा सतकर्म एवं सेवा करते हुये जीव में अपने आपको श्रेष्ठ जीव प्रमाणित करना चाहिये।
२. सूक्ष्म प्राणायाम एवम् सूक्ष्म योगासन करने के लिए सुखासन (सिद्धासन), पदमासन एवम् बज्रासन में बैठकर ही करें तथा दोनों अंगुठे और तर्जनी अंगुलियों से रिंग बनाकर दोनों हाथों को सीधा करके घुटनों के ऊपर रखकर करना चाहिए। उपरोक्त तीनों आसन में बैठकर करने में असमर्थ होने पर कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते है।सूक्ष्म प्राणायाम एवम् सूक्ष्म योगासन शान्त और खुले वातावरण (घर पर या मैदान) में पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके आसन (वुलन या कॉटन)पर बैठकर ही करना चाहिए।
३.सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन का अभ्यास करते समय पीठ,मेरूदण्ड, वक्ष तथा गर्दन को हमेशा सीधा रखना चाहिए। इसीलिए यह दोनो प्रक्रिया करने के लिये पदमासन या सुखासन का प्रयोग करना चाहिए। जब आप जमीन पर बैठतें हो तब सुखासन में ही बैठने की आदत डालें। क्योंकि इस आसन में बैठने से आपका सिर, पीठ, वक्ष व मेरूदंड सीधा रहेगा। जो कि बहुत लाभकारी है।
४.सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन के विभिन्न विधियों का अलग अलग गुण है। आपको सब विधियां करने का समय नहीं मिलता है तब जिस विधि से आपको फायदा लगे, उसका प्रतिदिन नियम से नियत संख्या में करने की कोशिश करें एवं धीरे धीरे विधियों की संख्या बढ़ाते रहें।अगर किसी कारणवश कभी कभी या कुछ दिन नही कर सके तो लाभ में कमी नही आयेगी और न ही कोई नुकसान होगा। धीरे धीरे समय और संख्या बढ़ाकर करने से ज्यादा फायदा होता है।
५.प्राणायाम एवमं योगासन करते समय नासिका द्वारा ही श्वास लें एवं छोड़ें । श्वास लेने एवं छोड़ने के अन्तर में कमी होने से आयु बढ़ती है। जैसे कछुवा १ मिनट में ५/६ बार श्वास लेने पर प्राय: २०० साल, मनुष्य १ मिनट में १५/१६ बार श्वास लेने पर प्राय: १०० साल, एवं पशुपक्षी १ मिनिट में २० से ३० बार श्वास लेने से प्राय: १५ से ३० साल की आयु मिलती है। श्वास के इस अन्तर को कम करने की प्रक्रिया प्राणायाम द्वारा ही सम्भव है । अन्तर कम करने के लिए श्वास को हटपूर्वक रोक कर नहीं करना चाहिए।
६.प्रात: काल निद्रा से (जब भी जागते हैं) उठने के बाद पूर्ण शौच (पेट साफ) से निवृत्त होकर तुरन्त सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करना चाहिये। पूर्ण शौच (पेट साफ) के बाद आत्मा एवं शरीर को अति आनन्द की अनुभूति होने से ज्यादा से ज्यादा प्राणायाम एवं योगासन करने की भावना होती है। पूर्ण शौच (पेट साफ) के लिए रोजना (रात्रिकाल में ताम्बे के बर्तन में छान कर रखा हुआ) शुद्ध पानी (छान कर) कम से कम २ गिलास पीना चाहिए। जरूरत होने पर रात्रि में सोने से पहले इसबगोल की भूसी, त्रिफला चूर्ण एवं बेलफल आदि भी ले सकते हैं। यह तीनों चीज हमेशा लेने से शरीर में कोई भी विकार नहीं होने की सम्भावना रहती है। यदि सम्भव हो तो रात्रिकाल में पानी को खूब गर्म करके ताम्बे के बर्तन में (ठण्डा कर) रख लें। सुबह इस पानी को पीने से पेट साफ रहता है। यह पानी शरीर के लिए महौषधी है एवं पानी में सर्वोत्तम है। भोजन करते समय पानी नहीं पीना चाहिए। इससे पाचन क्रिया में बाधा उत्पन्न होने के कारण भोजन ठीक से हजम नहीं होता है। इसलिए भोजन करने के पहले पानी पी लेना चाहिए या भोजन करने के आधा घंटे बाद पानी पीना चाहिए। भोजन करने के पहले या भोजन करने के पांच घंटे पश्चात ही प्राणायाम एवं योगासन करना चाहिए। भोजन के पहले ही करना सर्वोत्तम है।
७. शरीर को स्वस्थ्य और सुडौल रखने के लिए अन्न से बना हुआ भोजन सुर्यास्त के बाद रात्रि काल में आहार नहीं करना चाहिए। इससे मोटापा, शुगर, ब्लड प्रैशर आदि बीमारियां होने की सम्भावना रहती है। रात्रिकाल में जब सो जाते हैं तब शरीर को भोजन पचाने में सहजता होती है(ज्यादातर पशु पक्षी, जानवर आदि रा़ित्रकाल में आहार नहीं लेते) अगर रात्रि काल में भोजन लेना पड़े तब बहुत हल्का भोजन एवं भूख से कम खाना चाहिए। प्राणायाम एवं योगासन करने से पाचन क्रिया में फायदा होता है निरामिष (शाकाहारी) भोजन ही शरीर के लिये सर्वोत्तम है जो आसानी से पच जाता है।
८.मानव का शरीर हल्का, चुस्त एवं सुडौल रहने से सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्य योगासन करने से सहजता होती है। इसके लिए भोजन के बाद सिजनल फल का सेवन करना चाहिये। जिस सीजन में जो फल आता है वह फल खाने से सिजनल बिमारियों से शरीर को लड़ने की क्षमता बढ़ती है तथा पेट की बिमारियों में भी फायदा तथा मुख मन्डल कान्तिमय होता है।इसलिए भोजन के बाद सीजनल फल अवश्य खाना चाहिए।सीजनल फल ताजे एवम् सस्ते भी मिलते हैं।
९. अगर आप नियमित रूप से सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन करते हैं तब आपका शरीर ही आपको सचेत करने लगेगा कि आप कितने स्वस्थ एवं क्रियाशील हैं। मनुष्य का शरीर ही खुद का डाक्टर या वैद्य है। कारण हर मनुष्य के शरीर का गठन अलग अलग है। सब नियम एवमं सब बातें सबके लागू नहीं होते हैं। शरीर ही बीमारियों के माध्यम से आपको समझाते रहता है कि क्या नहीं खाना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये। पशु पक्षी, जानवर भी जब बीमार पड़ते है तब खाना पीना सब बन्द कर देते हैं और ठीक भी हो जाते हैं। यह सब उनको किने सीखाया, प्रकृति एवं शरीर ही सीखा देता है। इसलिए मनुष्य को प्रकृति के नियम एवमं माध्यम से जीने का अभ्यास करना चाहिए।
१०.‘‘अमृत’’ प्राचिन काल से दही (छाछ या मट्ठा) को ही अमृत माना जाता है।पुरुषों में बहुमूत्र रोग (प्रोस्टेट) की बिमारी एवं पेशाब में जलन होती है। जो (प्राणायाम) कपाल भाती प्रक्रिया और भोजन के बाद वङ्काासन (फोटो पृष्ठ सं.१) में १० मिनट बैठना चाहिए एवं रोजाना छाछ या मठ्ठा कम से कम २५० ग्राम भूना हुआ जीरा मिला कर पीने से बहुत ही फायदेमंद है। ५००ग्राम दही से पूरे परिवार के लिए छाछ या मट्ठा बन सकता है जो कि बहुत सस्ता होने के साथ साथ कई कठिन बीमारियों में लाभ देता है।
११. सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन करने के १५/२० मिनट पश्चात ही स्नान करें, कारण यह सब करने से शरीर का तापमान बढ़ जाता है । तापमान सामान्य होने पर ही स्नान करना चाहिये । आप स्नान करने के पश्चात भी प्राणायाम एवमं योगासन कर सकते हैं। सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन करने के पश्चात (अगर आप साबुन लगाना चाहे तो लगा कर नहा लीजिए) अपनी पसन्द के तैल से २/५ मिनट तक मालिश करने के बाद नहा ले। तत्पश्चात कॉटन का बिना रोएं वाला तौलिये से रगड़ कर शरीर को साफ कर लें। इससे आपको रोजाना नई ताजगी एवं स्फूर्ति मिलेगी।
१२.सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन किसी भी हालत में खाली फर्श या जमीन पर बैठकर या खड़े होकर नहीं करना चाहिए। कारण यह सब आसन करते समय शरीर की गर्माहट जमीन की ठण्डक पकड़ लेने से कम के दर्द की बिमारी हो जाने की सम्भावनाहै। यह दोनो प्रक्रिया करते समय जमीन पर वॅूलन या कॉटन का कारपेट का प्रयोग करें। पैदल चलते समय या जोगिंग करते समय कोई भी प्राणयाम एवमं योगासन नहीं करना चाहिये। बैठकर करने वाला और खड़े होकर करने वाला प्राणायाम एवं योगासन नियमानुसार शान्त तथा प्रसन्न मुद्रा में करने की आदत करें।
१३.सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन तनाव मुक्त होकर, धैर्य के साथ अपने अपने श्री भगवान जी का स्मरण करते हुए करना चाहिये। शरीर का हर अंग बहुत नाजुक होता है अत: इसके किसी भी अंग को विकृत करके या जोर लगाकर जबरदस्ती कोई भी प्रक्रिया नहीं करनी चाहिये। शरीर में किसी जगह दर्द या तकलीफ के कारण सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करने में अगर तकलीफ होती है तब नमक की पोटली (कॉटन के कपड़े से बंधा हुआ) या गर्म पानी की बोतल से दर्द की जगह सिकाई करें एवं पांच मिनट पश्चात कोई भी जैल या मूव आदि लगाकर दोनों प्रक्रिया करने से सजहता होगी और आराम भी मिलेगा। १४. समय ही नहीं मिलता
समय निकालने का नुस्खा
१. सुबह निद्रा से – ५ मिनट पहले उठना २. बैड टी पीने में – ५ मिनट बचाना ६. अखबार पढ़ने में ५ मिनट बचाना ७. टीवी देखने में ५ मिनट बचाना ८. बातें करने में ४ मिनट बचाना इसप्रकार कुल २४ मिनट बचाकर भी अपना कार्य किया जा सकता है ।
१५.सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन करने के पहले यदि सम्भव हो तो शुद्ध ऑक्सीजन लेने के लिये प्रात: काल उठ कर वृक्ष वाले मैदान या खुले मैदान में १५/२० मिनट तेज चलकर या जोगिंग करके चलने की आदत डालनी चाहिए। अगर मैदान की सुविधा न हो या मैदान में जाने का मन हो तो अपने मकान की छत पर २५/५० बार चक्कर लगाकर ऑक्सीजन ले सकते हैं। छतों पर फूल और पत्तो का पौधा प्राय:रहता है अगर आपकी छत पर पौधे नहीं है तो लगाने की कोशिश करें। सैर करने की आदत होने पर मोटापा, शूगर, ब्लड प्रेशर आदि बिमारियों में लाभ मिलने की पूर्ण सम्भावना है। सुबह सैर करते समय या जोगिंग करते समय आप अपने मन में अपने अपने इष्ट देवता का नाम, मंत्र या भन बोलते रहने से मानसिक शान्ति मिलेगी, मन प्रसन्न रहेगा। इससे आपको सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन करने में सहजता रहेगी।
१६.इस दुनिया में सबसे सच्चामित्र, भरोसेमन्द मित्र, जीवन भर साथ देने वाला मित्र यह अपना शरीर ही है। लेकिन ज्यादातर मनुष्य अपने शरीर के प्रति वफादार नहीं है, फालतु बातों से मन को फुसला कर एवं समझा कर अपने शरीर को स्वस्थ रखने का कर्तव्य नहीं करता । फिर इस भरोसेमन्द व सच्चे मित्र को किसी के आश्रित नहीं बनने दें और ना ही किसी को अपने ऊपर आश्रित (होन दें) रखने की भावना रखें। अगर अपने ऊपर कोई आश्रित है तो उसे सूक्ष्म प्राणायाम एवं कर्म के माध्यम से स्वावलम्बी बनने में सहायक हो।
१७.वर्तमान के इस कम्प्यूटर युग में बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करना अति आवश्यक हो गया है। इसके लिए बच्चों को स्वस्थ सुडौल, एकाग्र एवं प्रसन्नचित होना जरूरी है। जो सूक्ष्म प्रणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन द्वारा हो सकता है। बच्चे ही देश की धरोहर हैं। आगे चलकर देश के श्रेष्ठ नागरिक बनेंगे। सुशिक्षाओं एवें सुसंस्कारों के माध्यम से सतकर्मों द्वारा धनोपार्जन करते हुए कर्मशील होकर समस्त संसार में देश का नाम रोशन करने के साथ अपना जीवन तथा पारिवारिक जीवन भी सुखमय बना सकते है।
१८.प्राणायाम एवमं योगासन गर्भवती महिला और ज्वर रोगी को नहीं करना चाहिए। रोग पीड़ित व्यक्ति अपनी शक्ति एवं समझ के अनुसार ही करें। प्राणायाम एवं योगासन करते समय थकान अनुभव होने पर चार पांच बार लम्बी श्वास के माध्यम से विश्राम लेकर पुन: शुरू करें। तंग कपड़े पहनकर प्राणायाम एवम् योगासन नही करने चाहिए।
१९.मनुष्य अपने शरीर के पाचन तंत्र को चुस्त एवं तन्दुरूस्त रखने के लिए सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्य योगासन करने के साथ साथ निर्जला उपवास भी करना चाहिए। ७ दिन, १५ दिन या ३० दिन में एक बार १२ घन्टे का (रात में या दिन में) या २४ घंटे (रात-दिन) का निर्जला उपवास करने से पाचन तंत्र को पूर्ण आराम मिलता है। निर्जला उपवास में पानी, फल तथा दवाई आदि का भी सेवन नहीं करना चाहिए। इस उपवास से पाचन तंत्र पहले की अपेक्षा ज्यादा सक्रिया एवं सतेज होता है। इससे शरीर स्वस्थ और सुडोल होने की प्रबल सम्भावना है।
२०.वर्तमान समय में हार्ट अटैक के दौरे से बचने के उपाय सीने में दर्द का होना, स्वास फुलना, पसीने का ज्यादा आना एवं अत्यधिक बैचेनी महसूस होना हार्ट अटैक का लक्षण है। युवा अवस्था से ही अपने जीवन चर्या में परिवर्तन करने से हार्ट अटैक एवं अन्य कई बिमारियों से बचा जा सकता है। (१) सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन का करना, सुबह सैर और ज्यादा से ज्यादा पैदल चलने के माध्यम से शरीर को सुडोल (मोटापन नही होने देना) रखना। (२) शाकाहारी भोजन करने की आदत तथा रात्रि काल का भोजन सोने के कम ३ घंटे पहले करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद भोजन नही करना फायदेमंद होता है. (३) तनावमुक्त होकर खुश रहने के साथ उम्र के हिसाब से ६ से ८ घंटे तक (बिना नींद की दवाई लिए) सोने की कोशिश करना चाहिए। (४) भोजन में तली हुई चीजे, मिठाईयों का कम से कम सेवन एवं ध्रूमपान का त्याग करना चाहिए। इन सब आदत से उच्च रक्तचाप, शूगर और कोलेस्ट्रोल में कन्ट्रोल होता है।
२१. मानव के सम्पूर्ण शरीर में वायु भरी हुई है तथा शरीर का सब कार्य वायु द्वारा ही संचालित होता है। पांचन तन्त्र में खराबी होने के कारण वायु गैस में परिवर्तित होकर कई बिमारियों को जन्म देता है।इसलिए दोनो समय के भोजन के पश्चात वङ्कासन में बैठने से पाचन तन्त्र के मजबूत होने के कारण गैस की बिमारी में फायदा होता है। प्राय: सभी साधु संत भी आहार लेने के बाद वङ्कासन में कम से कम १० मिनट तक बैठते हैं। (वङ्कासन पृष्ठ संख्या १ के पहले पृष्ठ में फोटो है) गैस की बिमारी में आंवला, लौकी (घिया) और करेला की सब्जी या जूस बहुत लाभदायक है।
२२.प्रकृति ने प्रत्येक मानव के शरीर के हर जोड़ो में मोबिल आयल जैसा चिकना तरल पदार्थ दिया है जो कि मानव के ४०/५० वर्ष की उम्र होने के बाद से कम बनने लगता है जिससे दर्द का अनुभव होता है। इसलिए मनुष्य को ३०/४० वर्ष की उम्र से ही सूक्ष्म योगासन करना चाहिए । सूक्ष्म योगासन करते रहने से तरल पदार्थ बनता रहता है और अगर तरल पदार्थ सूखने के नजदीक हो तब भी तरल पदार्थ के फिर से बनने की सम्भावना है। कैल्शियम की कमी होने से भी जोड़ो में दर्द होने लगता है इसलिए कैल्शियम की कमी नहीं होने देना चाहिए।
२३.मनुष्य जीवन भर न तो कसरत, जिम पहलवानी कर सकता है नाही फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि खेल सकता है। यह सब क्रिया छुटने के बाद शरीर में कोई न कोई बिमारी और जोड़ों में दर्द होने की सम्भावना रहती है। लेकिन सूक्ष्म योगासन जीवन भर कर सकते हैं तथा इसे छोड़ने पर कोई परेशानी नहीं होती। यह प्रक्रिया करते रहने से ज्यादा से ज्यादा निरोग, चुस्त, स्वस्थ रहने की सम्भावना है।
२४. सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन क्या हैं? इन्हें क्यों करना चाहिए? मानव शरीर का सिर से पैर तक के बाहरी एवं भीतर के कुछ अंगो का दैनिक कार्य करने से, चलते फिरते रहने से एवं योगासन करने से सूक्ष्म योगासन हो जाता है। लेकिन शरीर के मुख मंडल से लेकर पैट के अन्दर में जो मशीने (कम्प्यूटर) है उसका व्यायाम कैसे होगा तथा शरीर के अन्दर लाखों नसें हैं उनकी अवरूद्धता (Blockage) कैसे खुलेगी। यह सब काम सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा भी होता है। हजारों वर्ष पहले अपने साधु सन्त, मुनिराज एवं महापुरूषों हिमालय पर्वत पर भयंकर ठण्ड में तथा पहाड़ों पर भयंकर गर्मीयों में कैसे तपस्या करते थे तथा कैसे जीवित रहते थे एवमं उन्हें कहां से ऊर्जा मिलती थी। यह सब सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन द्वारा ही सम्भव था। आइए हम सब जहां भी रहते है रोजाना कम से कम २४ घंटे में २४ मिनट का समय निकाल कर सूक्ष्म प्राणायाम एवमं सूक्ष्म योगासन करके और वहां की जल वायु एवं माटी के साथ संबंध बनाकर स्वस्थ एवम् सुडौल, ऊर्जावान नागरिक बनें।