सल्लेखनादि से उपार्जन किया हुआ समीचीन धर्म प्रतिष्ठा, धन, आज्ञा और ऐश्वर्य से तथा सेना, नौकर-चाकर और काम भोगों की बहुलता से लोकतिशायी अद्भुत अभ्युदय को फलता है। सातावेदनीय प्रशस्त कर्मप्रकृतियों के तीव्र अनुभाग के उदय से उत्पन्न हुआ जो-इन्द्र, प्रतिक, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि देव सम्बन्धी दिव्य सुख और चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, अर्धमण्डलीक, मण्डलीक, महामण्डलीक, राजाधिराज, महाराजाधिराज, परमेश्वर आदि सम्बन्धी मानुष सुख को अभ्युदय सुख कहते हैं।