अयोध्या मंगलं कुर्या-दनंततीर्थकर्तृणाम्। शाश्वती जन्मभूमिर्या, प्रसिद्धा साधुभिर्नुता।।१।।
ऋषभोऽजिततीर्थेशो-ऽप्यभिनंदनतीर्थकृत्। श्रीमान् सुमतिनाथश्चा-नन्तनाथजिनेश्वर:।।२।।
पंचतीर्थकृतां गर्भ-जन्मकल्याणकादिषु। इंद्रादिभि: सदा वंद्या, वंद्यते वंदयिष्यते।।३।।
असंख्यात-मुक्तिगानां, भरतादिन¸णामपि। जन्मभूमिर्मया भक्त्या, त्रिसंध्यं वन्द्यते मुदा।।४।।
अनंतों तीर्थंकरों की जन्मभूमि ‘अयोध्या’ यह शाश्वत तीर्थ है। यह तीर्थ साधुओं के द्वारा भी नमस्कृत है, ऐसा यह अयोध्या तीर्थ मंगल करे, हम सभी के लिए मंगलकारी होवे।।१।।
भावार्थ – इस अयोध्या में वर्तमान में श्री ऋषभदेव के गर्भ, जन्म दो कल्याणक एवं शेष द्वितीय, चतुर्थ, पंचम एवं चौदहवें तीर्थंकर के गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान ऐसे ४-४ कल्याणक हुए हैं।
दोहा– तीर्थंकर को वंदते, जन्मभूमि वंदंत।
तीर्थंकर को तीर्थ को, नमूँ मिले भव अंत।।१।।
इस मध्यलोक में प्रथम जम्बूद्वीप में १ भरत, १ ऐरावत, द्वितीय धातकीखण्ड द्वीप में २ भरत, २ ऐरावत, तृतीय पुष्करार्धद्वीप में २ भरत, २ ऐरावत, ऐसे ५ भरत, ५ ऐरावत इन दश क्षेत्रों में षट्काल परिवर्तन में चतुर्थकाल में २४-२४ तीर्थंकर होते रहते हैं। उन्हीं के भूत, वर्तमान व भविष्यत् संबंधी ऐसे १०²३·३० चौबीसी के ये मंत्र हैं।