आदिपुराण ग्रंथ में लिखा है कि दिग्विजय प्रस्थान के समय भरत चक्रवर्ती ने चौराहों में, गलियों में, नगर के भीतर और बाहर सभी जगह रत्नों के ढेर लगा दिए थे और वे सब याचकों के लिए दे दिये थे।
(आदिपुराण भाग-२, पृ. १, श्लोक-३)