तीन व्यक्तियों की एक ही समय मृत्यु हुई। यमराज ने तीनों से पूछा— ‘ बताओ, कहाँ जाना चाहते हो ? एक ने कहा— ‘ मैं रत्नों का व्यापारी था, करोड़ों के हीरे—जवाहिरात का मेरा धंधा था। अभी बच्चे कुशल नहीं बने हैं। इस बार पुन: वहीं भेजें। दूसरे ने कहा— ‘मैं मिल का मालिक था । मेरे भी करोड़ों का व्यापार है। इस वर्ष दस करोड़ का मुनाफा हुआ है। इस बार मुझे भी वहीं भेजें, ताकि व्यापार अच्छी तरह जम जाए। ’ तीसरा चोर था। उसने कहा—‘ दस जगह हाथ मारता हूँ तो एक जगह कुछ मिलता है। आप तो मुझे इन दोनों का पता बता दें। मैं इनके यहां जाना चाहता हूँ। यह अर्थ केन्द्रित का निदर्शन है, अर्थकेन्द्रित चिन्तन में येन—केन—प्रकारेण धन बटोरने की लालसा रहती है और यही लालसा अनेक अनर्थों को जन्म देती है।