सर्वप्रथम पद्मासन या अर्द्धपद्मासन लगाकर बैठें नासाग्र दृष्टि रखें नहीं तो आँख बंद करके भी बैठ सकते हैं ” योग मुद्रा में बैठें “ अपने अंतर्चक्षु से देखें कि हमारे ह्रदय में एक सुन्दर कमल खिला हुआ है ” बहुत सुन्दर सोलह पंखुड़ियों का कमल खिला हुआ है जैसे कि भगवान महावीर के निर्वाणस्थान पावापुरी के सरोवर में बहुत सारे कमल खिले हुए हैं ” ऐसे हमारे ह्रदय में एक बहुत सुन्दर कमल खिला हुआ है ” अंतर्चक्षु से-ज्ञाननेत्र से आपको दिख जाना चाहिए “चर्मचक्षु से नहीं ज्ञान चक्षु से आपको देखना है,ज्ञाननेत्र से देखना है सुन्दर कमल ” उसकी कर्णिका पीली-पीली है ” उस कर्णिका के ऊपर आप लिखेंगे पहले हिंदी और संस्कृत वर्णमालाओं का जो अक्षर है अ सिद्धोवर्णसमाम्नाय:-वर्णों का समुदाय अनादिकाल से सिद्ध है ” और भगवान ऋषभदेव ने सर्वप्रथम ब्राह्मी पुत्री को अ-आ-इ लिखा करके इस अक्षरमाला का वर्णमाला का ज्ञान कराया था सम्पूर्ण वर्णमाला में प्रथम अक्षर है अ और अंतिम अक्षर है ह” आप घिसी हुई सुन्दर केसर अथवा समझिए स्वर्णिम घोल है और सोने की कलम अथवा अनार की कलम से भी यन्त्र बनाते हैं ” ऐसे आप बुद्धिरूपी लेखनी से लिखेंगे ज्ञाननेत्र से देखेंगे ” बुद्धिरूपी लेखनी से लिखें अर्हं, ये बीजाक्षर बन गया “ज्ञानचक्षु से आप देखें, देखने का प्रयास करें, पुरुषार्थ करें ” जितनी अधिक देर तक भी आप अपने मन को एकाग्र करके इस अर्हं बीजाक्षर पर टिकाएंगें यही हमारा ध्यान-पदस्थ ध्यान (धर्मध्यान के अंतर्गत पदस्थ ध्यान) ये अर्हं बीजाक्षर का ध्यान हमारी आत्मा को पवित्र करके अर्हं-अरिहंत अवस्था को प्राप्त कराने वाला इस अर्हं में अपने उपयोग को स्थिर करें ” बार-बार पुनः-पुनः इसको देखें ” पुनः देखेंगे आप कि अर्हं के चारों तरफ एक गोलाकार बन गया है “