ज्ञान आठ प्रकार के होते है पांच सम्सग्ज्ञान और तीन कुज्ञान । जिसमें पांच ज्ञानों का वर्णन करते हुए तत्त्वार्थसू नामक ग्रन्थ में आचार्य उमास्वामी ने कहा-
‘‘मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानिज्ञानम् ’’
अर्थात् मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान ये पांच ज्ञान है जिसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा लिये हुए रूपी पदार्थ का इन्द्रियादिक की सहायता बिना जोे ज्ञान होता है उसे अवधिज्ञान कहते हैं अर्थात् अवधिज्ञान पुद्गल द्रव्य की कुछ पर्यायों को ही जानता है। अवधिज्ञान के दो भेद है- भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय अर्थात् क्षयोपशमनिमित्तक । जिस अवधिज्ञान के उत्पन्न होने में भव ही निमित्त होता है अन्य व्रत आदि कारण नहीं होते है उसे भवप्रत्यय अवधिज्ञान कहते हैं यह देव तथा नरक पर्याय में नियम से प्रगट होता है। जो अवधिज्ञान व्रत नियम आदि के द्वारा अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होता है उसे गुणप्रत्यय अवधिज्ञान कहते है। भवप्रत्यय अवधिज्ञान तीर्थंकर के भी होता है।