अखरोट केवल साधारण खाद्य पदार्थ ही नहीं अपितु स्वास्थ्य एवं चिकित्सकीय दृष्टि से भी इसका अत्यन्त महत्त्व है। अखरोट समूल ही बहुपयोगी है। औषधीय उपयोग के लिये अखरोट की गिरी मज्जा, गुठली एवं गिरी का तेल बहुतायत मात्रा में प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार अखरोट गुण में गुरु, स्निग्ध, रस—मधुर, विपाक मधुर, कर्म वातशामक, कफ पित्तवद्र्धक, दीपन, स्नेहन, कफनिस्सारक, बल्यवद्र्धक तथा स्तंभक माना जाता है। आयुर्वेद ग्रंथों में अखरोट की पत्तियों के विषय में कई तरह की उपयोगी बातें दी गई हैं। इसकी रसीली पत्तियों को एक से तीन घंटे तक पानी में उबालकर जो द्रव निकाला जाता है, उसके प्रयोग (पीने) से रूधिर वाहिकाओं में फैलाव होता है, हाजमा सुधरता है। पर्वतीय प्रदेशों के निवासी अखरोट की पत्तियों का काढ़ा बनाकर चाय के रूप में पीते हैं। आँखों के आने पर (लाल हो जाने पर) इसके रसीले पत्तों के द्रव से धोने पर शत—प्रतिशत लाभ पहुँचता है। इससे कुल्ला किया जाय तो मसूड़ों के घाव भर जाते हैं तथा दांत अपनी जगह मजबूत और चमकीले हो जाते हैं। अखरोट की पत्तियों की गाढ़े रस को खुजली पर लगाने से बहुत जल्द आराम होता है। गठिया तथा आमवात अगर प्रभावी होने लगे तो इसकी पत्तियों के रस को पानी में डालकर उस पानी से नहाना चाहिए। इससे बहुत लाभ होता है। अखरोट की गिरी अपने आप में अत्यन्त ही पौष्टिक पदार्थ होता है। अन्य व्यंजनों के निर्माण में अखरोट की गिरी का चूर्ण मिला देने पर वह बलवृद्धिकारक हो जाता है। अखरोट की गिरी को रात में पानी में भिगोकर प्रात: उस पानी से आँखों को धोने से आँखों की जलन मिट जाया करती है। अखरोट की गिरी से प्राप्त तेल का उपयोग बादाम के तेल की तरह किया जा सकता है। गुठली या छिलके का भस्म दंतमंजन के चूर्णों में डाला जाता है। रक्तार्श में उक्त भस्म का मौखिक सेवन रक्तस्राव को रोकता है। यूनानी मतानुसार अखरोट द्वितीय कक्षा में ऊष्ण तथा तृतीय में तर होता है। इसका सेवन विशेषकर सर्दी में लाभदायक होता है। अखरोट की गिरी उत्तमांगों को विशेषकर मस्तिष्क को बल प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह बुद्धि एवं मन आदि अन्तज्र्ञानेन्द्रियों को भी पुष्ट करती है। बाजीकर, मृदुसारक एवं विलयन गुणों के कारण इसका प्रयोग अधिकतर बाजीकर योगों में समाविष्ट कर दिया जाता है। भुनी हुई अखरोट गिरी शीतकाल में गुणकारी मानी जाती है। शीतकाल में इसकी गिरी का सेवन करते रहने से शीतकालीन आनन्द को भरपूर मात्रा में उठाया जा सकता है। पक्षाघात एवं आमवात आदि व्याधियों में इसका बाह्य एवं आन्तरिक दोनों ही प्रकार से उपयोग किया जाता है। ताजी गिरी को पीसकर लेप करने से व्रणचिन्ह मिट जाता है। गिरी को दूध या दही के साथ घिसकर मुंह पर मलने से चेहरे की झाई दूर हो जाती है। अखरोट की गिरी को पानी के साथ घिसकर आँखों के पोरों पर लगाते रहने से आँखों के किनारे छाने वाली कालिमा दूर हो जाती है। गर्मी के मौसम में अखरोट का आंतरिक सेवन न करके सिर्फ बाह्य सेवन ही करना चाहिए। अखरोट की गिरी में कैलोरी अधिक होती है, अत: दुबले व्यक्तियों के लिये इसे वरदान माना जाता है। अखरोट की गिरी, बच्चे, बूढ़ों डायबिटीज के रोगियों या जिनको दिल का दौरा पड़ चुका है, अधेड़ उम्र वालों तथा दूध पिलाने वाली माताओं के लिए अधिक गुणकारी मानी जाती है।
जिनेन्दु अहमदाबाद, १ मार्च २०१५