विजयार्थ की उत्तर श्रेणी का एक नगर। एक ग्रह। वर्तमान भारतीय इतिहास का एक प्रसिद्ध राजा, यह चन्द्रगुप्त मौर्य का पोता और बिम्बसार का पुत्र था। मगधदेश के राज्य को बढ़ाकर इसने समस्त भारत में एक छत्र राज्य की स्थापना की थी। यह बड़ा धर्मात्मा था। पहले जैन था परन्तु पीछे से बौद्ध हो गया था। ई. पू. २६१ में इसने कलिंगदेश पर विजय प्राप्त की और वहाँ के महारक्त प्रवाह को देखकर इसका चित्त संसार से विरक्त हो गया। समय जैन मान्यतानुसार ई. पू. २७७-२३६ है और इतिहासकारों के अनुसार ई. पू. २७३-२३२ है।
आज भी सम्राट अशोक की बनाई हुई अशोक लाट ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
अरिहन्त भगवान के चौतीस अतिशयों के पश्चात् अष्ट प्रातिहार्य के वर्णन में अशोकवृक्ष का नाम आता है-
तरू अशोक के निकट में, सिंहासन छविदार। तीन छत्र सिर पर फिरें, भामंडल पिछवार।
दिव्यध्वनी मुखते खिरें, पुष्पवृष्टि सुर होय। ढोरें चौंसङ्ग चमर जख, बाजे दुंदुभि जोय ।।
हस्तिनापुर के राजा अशोक । उनकी महारानी रोहिणी देवी थीं जिन्हें रोहिणी व्रत के प्रभाव से रोना नहीं आता था अर्थात् एक समय राजा-रानी महल की छत पर अपने पुत्र के साथ आमोद-विनोद कर रहे थे तभी महल की ओर कुछ स्त्रियां एक मृत बालक को लिए रोती चीखती आई तब रानी ने धाय से पूछा कि यह कौन सी नृत्यकला है बार-२ शोक, दुख का अर्थ समझाने पर भी जब रानी न समझी तब राजा ने शोक का अर्थ बताने हेतु क्रोधित हो युवराज को महल से नीचें फेंक दिया पर देवताओं ने उसकी रक्षा कर उसे दिव्यासन पर बिङ्गा दिया पुन: चारणऋद्धिधारी मुनियों द्वारा ज्ञात हुआ कि रोहिणी व्रत किया था जिससे इसे दुख शोक का ज्ञान नहीं है। बाद में यह राजा अशोक भगवान वासुपूज्य से समवसरण में दीक्षा ले मोक्ष गए और रानी ने आर्यिका दीक्षा लेकर सोलहवें स्वर्ग को प्राप्त किया ।