मद्य, मांस, मधु और पांच उदुम्बर फलों (ऊमर, कठूमर, पाकर, बड़ , पीपल) का त्याग कर देना ही अष्टमूलगुण है। सम्यग्दर्शन के साथ इन आठो के त्यागरूप आठ मूलगुणों को धारण किये बिना कोई भी मनुष्य श्रावक नहीं हो सकता है। ‘मूल’ शब्द का अर्थ जड़ है। जिस वृक्ष की जड़े गहरी और बलिष्ठ होती है उसकी स्थिति बहुत सम तक रहती है किन्तु जिसकी जड़े गहरी और बलिष्ठ नहीं होती है वह वृक्ष बहुत काल तक नहीं टिक पाता है आंधी आदि के द्वारा उखड़ जाता है ठीक इसी प्रकार से इन आठ मूलगुणों के बिना श्रावक के अणुव्रत आदि की स्थिति भी दृढ़ नहीं रहती है। इसीलिए इन्हें मूलगुण संज्ञा दी है।
इन मूलगुणों को अन्यत्र अन्य प्रकार से भी लिया है सागारधर्मामृत में कहा है-
मद्यपलमधुनिशासनपंचफलीविरतिपंचकाप्तनुति:।
जीवदयाजलगालनमिति च क्वचिदष्टमूलगुणा:।।
अर्थात् – मद्य, मांस, मधु, रात्रिभोजन, पांच उदुंबर फल, इनका त्याग तथा पंचपरमेष्ठी को नमस्कार – देवदर्शन, जीवदया पालन, जल छानकर पीना ये आठ मूलगुण है।