पुरुरवा भील मुनि को मारना चाहता था लेकिन उसकी स्त्री ने कहा इन्हें मत मारो, ये वनदेवता हैं। तब उसने मुनि को नमस्कार किया। मुनि ने उपदेश देकर मद्य, मांस, मधु और पाँच उदुम्बर फलों का त्याग करा दिया।
भील इस व्रत के पालन से मरने पर स्वर्ग में देव हो गया। यही भील का जीव कालांतर में भगवान महावीर हुआ है।
अष्टमूलगुण-१. मद्य, २. मांस, ३. मधु, ४. बड़, ५. पीपल, ६. पाकर, ७. कठूमर, ८. गूलर। इन आठों का त्याग अष्टमूलगुण है।
द्वितीय प्रकार से अष्ट मूलगुण-१. मद्य त्याग, २. मांस त्याग, ३. मधु त्याग, ४. रात्रि भोजन त्याग, ५. पाँच उदुम्बर फलों का त्याग, ६. जीव दया का पालन करना, ७. जल छानकर पीना और ८. पंच परमेष्ठी को नमस्कार करना। ये आठ मूलगुण हैं। जो गुणों में मूल हैं उन्हें मूलगुण कहते हैं, जैसे-मूल (जड़) के बिना वृक्ष नहीं हो सकता है, वैसे ही इन आठ मूलगुणों के बिना श्रावक नहीं कहला सकता है।
एक बिन्दु मात्र भी मधु-शहद खाने से सात गांव जलाने का पाप लगता है। ऐसे ही मांस खाने से और शराब पीने से महापाप होता है। बड़, पीपल, पाकर, कठूमर और गूलर इन पाँच उदुम्बर फलों के खाने से भी अगणित त्रस जीवों का घात होता है अत: इन सबका त्याग आवश्यक है।