प्रभु ऋषभदेव ने बड़े पुत्र भरत को राज्यभार सौंप कर प्रयाग में जाकर दीक्षा ली थी, श्रीभरत चक्री के प्रथम पुत्र अर्ककीर्ति ने राज्यभार को अपने पुत्र को सौंपकर दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया, ऐसी परम्परा अविच्छिन्नरूप से चौदह लाख राजाओं तक चली है। आगे भी उसी इच्छवाकुवंश में राजागण मोक्ष प्राप्त करते रहे हैं।
वहीं पर राजा सगर दूसरे चक्रवर्ती हुए हैं। इनके ६० हजार पुत्रों ने एवं स्वयं चक्रवर्ती ने भी दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया है। श्रीराम, भरत, शत्रुघ्न ने भी निर्वाण प्राप्त कर आत्मा को परमात्मा बनाया है। श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने भी दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया है।