लखनऊ। डेविड बेकहम को अस्थमा है । इसके बाद भी वह फुटबॉल के मशहूर खिलाड़ी है। अस्थमा से पीड़ित कई खिलाड़ियों ने न केवल वर्लड् ओलिंपिक में खेला है, बल्कि मेडल भी जीता है । डॉक्टर भी कहते हैं कि अस्थमा से घबराना नहीं चाहिए बल्कि सही जीवन शैली और इनहेलर का नियमित इस्तेमाल करके एक बैलेंस्ड लाइफ जी सकते हैं। देश में लगभग तीन करोड़ लोग अस्थमा के रोगी हैं। यह बच्चों और बड़ों दोनों को ही प्रभावित करता है । दमा का सही इलाज नहीं होने पर यह जानलेवा भी साबित होता है। इनहेलशन थेरेपी सबसे कारगर इलाज है, जिसकी कीमत १० रूपये रोजाना से भी कम है। अस्थमा पर बोलते हुए विशेषज्ञ डॉ. बी.पी सिंह कहते हैं कि इसको लेकर कई भ्रांतियां हैं, जिसे दूर करने की जरूरत है। इससे पीड़ित लोग कहते हैं कि दही, चावल और एसी से अस्थमा होता है । जबकि यह सच नहीं है। केजीएमयू के कुलपति डॉ. सूर्यकांत के अनुरूप अधिकांश लोग कपिंग, सांस लेने की तकलीफ और छींक जैसे लक्षणो का इलाज खुद या केवल डॉक्टर की सलाह लेकर दवा कर लेते हैं। अस्थमा और इनहेलर जैसे को लेकर डरते हैं। इसे लोगों को गलत जानकारी कर वजह से है। अस्थमा पर पूर्ण नियंत्रण संभव है। इसीलिए अस्थमा और इन्हेलर्स के मिथक को तोड़ना जरूरी है। डॉ. बीपी सिंह ने बताया कि खांसी , सांस फूलना और छाती की जकड़न अस्थमा के शुरुआती लक्षण है। इसके चलते सांस की नली सिकुड़ जाती है। सूजन भी आ सकती है। इससे सांस लेने में रूकावट आने लगती है। संक्रमण का खतरा बढ़ते —बढ़ते अस्थमा का रूप ले लेता है । मौसम के बदलाव से भी अस्थमा मरीजों में इजाफा होता है। अस्थमा नान एलर्जिक और एलर्जिक दो तरह का हो सकता है। इनमें दो तिहाई मरीजों में एलर्जी की वजह से अस्थमा होता है।
अस्थमा का इलाज
अस्थमा का इलाज अन्य बीमारियों से अलग होता है। यहां दो तरह इलाज होता है, एक प्रिवेंट या कंट्रोल जिसमे अस्थमा कंट्रोल रहता है और दूसरा रिलीव जिसमें इनहेलर के इस्तेमाल से तुरंत आराम मिलता है। अस्थमा में इनहेलर्स का प्रयोग सबसे कारगर होता है। इसकी खासियत यह है कि कोई साइड इपेक्ट नहीं होता। यह सीधा बीमारी पर टारगेट करती है, लेकिन अस्थमा के रोगी को जीवन भर दवा लेनी होती है। पीकपलो— मीटर से जाने सांस की रफ्तार पीकपलो— मीटर से अस्थमा पेशेंट अपने ब्रीथ पर वंâट्रोल रख सकते हैं। इसमें पेशेंट फूक मार कर अपने सांस की रफ्तार को जान सकता है। मीटर की रीडिंग ज्यादा होने पर आप स्वस्थ है और रीडिंग कम होने का मतलब है कि सांस में दिक्कत है। एक स्वस्थ आदमी की एयर ब्लो स्पीड ६००—७०० के बीव होती है। यह उपकरण बहुत ही सस्ता मिलता है।
ऐसे करें बचाव
अस्थमा के मरीजों को धूल, गर्दा, धुएं और धूम्रपान से दूर रहना चाहिए। अस्थमा पेशेंट को अपने यहां कालीन नहीं लगाना चाहिए। डॉक्टरों के अनुसार ऐसे लोगों को जानवर पालने से भी बचना चाहिए। इनसे निकलने वाली धूल और सांस लेने में तकलीफ पैदा करती है और एलर्जी बढ़ सकती है । तकिए और गद्दे को हर हफ्ते दो घंटे धुप जरूर दिखाए। इनमे धुल के साथ सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो अस्थमा पेशेंट के लिए खतरनाक होते हैं।