विश्व के समस्त धर्मों में न्यूनाधिक रूप में अहिंसा का महत्व समझाया गया है। भारत वर्ष में जैन, बौद्ध एवं वैदिक धर्म ने अहिंसा को अत्यधिक महत्व दिया है। यह एक व्रत के रूप में स्वीकार किया गया है। जैन धर्म में पाँच महाव्रतों में अहिंसा एक प्रमुख व्रत है।
भारतवर्ष के अर्वाचीन इतिहास में महात्मा गाँधी ने अहिंसा को प्रमुख स्थान दिया और उसे पराधीनता से मुक्ति हेतु अस्त्र के रूप में प्रयोग कराया।
जैन आचार, आहार एवं जीवन शैली का सम्बन्ध व्रतों से है। अहिंसा के विचार का मनुष्य में उदय तथा पोषण होता है। इसीलिए इन व्रतों से मानव में संयम तथा अिंहसा का पोषण होता है। आहार संयम के लिए प्राचीन काल में एक परम्परा थी कि श्रावक अपने घर के भोजनालय में शुद्ध एवं सात्विक एवं पौष्टिक भोजन करता था। समय एवं खाद्य पदार्थों में पूर्ण प्रमाणिकता थी किन्तु आज परम्परागत गृहस्थों के भोजनालय बदल गये हैं।
उनका परिवर्तित स्थान आधुनिक होटल, डाईनिंग हाल आदि आहार के व्यापारिक संस्थानों ने ले लिया है। आधुनिक कारखानों में निर्मित आहार का व्यापक रूप में प्रयोग (होम डिलिवरी के रूप में) प्रचलित हो चुका है। आगामी समाज की पीढ़ी इसी आहार एवं पेय द्रव्यों पर निर्भर होगी, उससे जो शरीर एवं मन बनेगा वह भविष्य के गर्भ में है। सम्पूर्ण राष्ट्र एवं समाज पर इसका कुप्रभाव होगा। अत: इसका स्वस्थ विकल्प ढूँढना हमारा कर्तव्य है इसलिए अब विचार करना जरूरी हो गया है।
यह सर्व विदित है कि धर्मोपदेशक एवं साधु जैनागमों में वर्णित खान—पान का समय—समय पर प्रवचन करते हैं और समाज का ध्यान उसके लाभ हानियों की ओर भी आकृष्ट करते हैं, किन्तु उसका फल न्यून है। अत: इस सम्बन्ध में विशेषज्ञों को विचार करना चाहिए तथा सक्रिय कदम उठाना चाहिए। कृषि कार्यों में कीटनाशक औषधियोें के प्रयोग पर भी अहिंसक समाज को विचार करना चाहिये। आज विश्व में सूखी खेती तथा कीटनाशक दवाओं के वगैर कृषि सम्भव है।
इजराइल का अमिरिम ग्राम इसका उदाहरण है। भारत में ऐसा हो, इसके लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक है। इससे अहिंसक विचार को बल मिलेगा बहुत—सी औषधियाँ जान्तव द्रव्यों (हिंसक रीति) से निर्मित होती हैं। वे अहिंसक एवं शाकाहार आस्था रखने वाले समाज के लिए अभक्ष्य हैं। अत: चिकित्सकों को समाज के समक्ष एक विचार रखना चाहिए कि कौन—कौन सी औषधियाँ भक्ष्य या अभक्ष्य हैं। जैन चिकित्सकों का यह दायित्व भी है। वैâप्सूल का भी विकल्प ढँढूना चाहिए। इसके लिए उद्योगपति पहल कर सकते हैं।
सौन्दर्य प्रसाधनों में अनेक जान्तव द्रव्यों का प्रयोग होता है। अहिंसा के विचार की दृष्टि से इस पर विचार करना होगार्। (Beauty without cruelity) के विचार को मान्य करना चाहिए और इसके लिए जो करना हो, करना चाहिए। वस्त्रों में रेशम का प्रयोग भी विचारणीय है। वस्त्र उत्पादन में मटन टेलो (मांस चर्बी) का प्रयोग होता है, यह सभी जानते हैं। अत: अहिंसक एवं शाकाहार समाज को यथासम्भव खादी, सूती अथवा सिन्थेटिक वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए।
शाकाहार क्या है ? सहज स्वभाव है। शाकाहार में दो शब्द सम्मिलित है। शाक और आहार। शाक से आशय साग—पात, तरकारी—फल, दूध—घी आदि का है और आहार से अभिप्राय रोटी, दाल, चावल आदि से है। जिस प्रकार दीर्घ जीवन के लिए शुद्ध जल, वायु आवश्यक है। उसी प्रकार शुद्ध शारीरिक, मानसिक भोजन भी आवश्यक है। शाकाहार जितना धार्मिक है, माँसाहार उतना ही अधार्मिक है। शाकाहार हितकर भोजन है।
शाकाहार क्यों ? दुनिया के उच्च कोटि के वैज्ञानिक चिकित्सक और खिलाड़ियों का कहना है कि शाकाहार सर्वश्रेष्ठ भोजन है। शाकाहारी भोजन में भोजन तन्तु अधिक पाये जाते हैं। भोजन तन्तुओं की अधिकता से आँतों में भोजन का चलन व्यवस्थित रहता है। विभिन्न वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य स्वभाव से माँसाहारी नहीं है। वह तो स्वाद की लोलुपता और निर्दयता से माँसाहारी बनता जा रहा है।
शाकाहार से लाभ—शाकाहारी भोजन से अनेक लाभ हैं। शाकाहारी भोजन से हमें भरपूर रेशे मिलते हैं। इसके नियमित प्रयोग से कब्ज होने की कोई सम्भावना नहीं रहती। स्वास्थ्य की दृष्टि से शाकाहार भोजन उत्तम है। इसलिए आज विश्व में सभी डॉक्टर शाकाहार का समर्थन करते हैं। इसमें रोग—निरोधन शक्ति है। आर्थिक दृष्टि से भी शाकाहार उत्तम भोजन है। शाकाहार के द्वारा कम मूल्य में अधिक ऊर्जा व वैâलोरी प्राप्त की जा सकती है।
भारत की जीवन—शैली के दो प्रमुख प्रेरक सूत्र हैं–‘जियो और जीने दो’ तथा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (यह धरती हमारा परिवार है)। अहिंसा और सहअस्तित्व की पवित्र भावनाओं ने इस देश में परस्पर—सहयोग, प्रीति और विश्वास का खुशहाल वातावरण बनाया है। कोई भी भारतीय धर्म जीव—िंहसा/रक्तपात के पक्ष में नहीं है।
जहाँ तक शाकाहार के उद्भव का प्रश्न है, यहाँ सदियों से कृषि पर जोर दिया जात रहा है। जैनधर्म के वर्तमान युग के प्रथम तीर्थंकर भगवान् आदिनाथ ने कृषि—संस्कृति का प्रवर्तन किया था। उन्होंने मनुष्य को ऐसी अिंहसक जीवन—शैली प्रदान की थी, जिसने एक—दूसरे के साथ प्रेम से रहने की सम्भावनाओं को समृद्ध दिया था। भारत गाँवों का देश रहा है। पशु–पालन भारतीय संस्कृति का प्रमुख प्रदेय है। माँसाहार का भारतीय संस्कृति से कोई तालमेल नहीं है।
भारत में वधशालाओं का जाल अंग्रेजों के जमाने में बिछना शुरू हुआ। आश्चर्य का विषय है कि जितने कत्लखाने अंग्रेजों के युग में नहीं खुले, उससे कई गुना स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमारे इस शस्यश्यामल देश में खुल गये है। आज हमारी इस पवित्र धरा पर हजारों कत्लखाने हैं, जिनमें रोज दर—रोज लाखों—लाख पशु काट दिये जाते हैं।
हिंसा और आतंक का दौर उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। क्रूरताएँ इस कदर बढ़ गयी हैं कि उन्होंंने न सिर्फ पशु—पक्षियों वरन् स्वयं मनुष्य पर भी अपना खूनी पंजा पसार दिया है। यदि शाकाहार—आन्दोलन को जल्दी ही विस्तृत नहीं किया गया तो तय है कि देश स्वयं एक कत्लखाने में बदल जाएगा।
अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान, मैक्सिको, युगोस्लाविया आदि देशों में वहाँ के निवासी माँसाहार का त्यागकर शाकाहार ग्रहण कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संघ ने १६० बीमारियों के नाम अपने समाचार पत्र में घोषित किये हैं, जो माँसाहार से पैâलती हैं। रूस के अबेकशिया प्रान्त में अधिकांश निवासी शाकाहारी हैं, जो विश्व में दीर्घायु के लिए प्रसिद्ध है। पश्चिम जर्मनी में हाइडिल वर्ग स्थित कैसर केन्द्र के अनुसार खासतौर पर हृदय एवं रक्त संचालन सम्बन्धी बीमारियों से मृत्यु दर माँसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारियों में कम है। शिकागो में भी चार साल तक ऐसे मरीजों पर प्रयोग किये गये हैं। इन प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकला कि शाकाहारी भोजन निश्चितरूप से उच्च रक्तचाप को ठीक रखने में सहायक है।
माँस भक्षी मनुष्य ऐसा समझते हैं कि माँसादि में अन्न, फल, दूध, सब्जी आदि से अधिक शक्ति के अंश होते हैं, तो उनका यह सोचना बिलकुल गलत है। वैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा विशिष्ट पदार्थों से प्राप्त होने वाली शक्ति की मात्रा निम्न तालिका से पूर्णतया स्पष्ट हो जाती है—
वस्तु | शक्ति की मात्रा |
सूखे चने मटर में | ८७ प्रतिशत |
बादाम में | ९१ प्रतिशत |
दाल आदि मेवा में | ७३ प्रतिशत |
घी में | ८७ प्रतिशत |
दूध में | १४ प्रतिशत |
दूध में ८६ प्रतिशत जो पानी होता है वह भी स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है।
माँस में | २८ प्रतिशत |
इसका जलीय अंश मानव—शरीर के लिये हानिकारक होता है।
चावल में | ८७ प्रतिशत |
गेहूँ के आटे में | ८६ प्रतिशत |
जौ के आटे में | ८४ प्रतिशत |
मलाई में | ६९ प्रतिशत |
अंगूर आदि फलों में | २५ प्रतिशत |
इन फलों का जलीय अंश भी मनुष्य शरीर के लिये फायदेमन्द होता है।
मछली में | १३ प्रतिशत |
अण्डे में | २१ प्रतिशत |
इनका जलीय अंश भी हानिकारक होता है।
इसके अनुसार माँस में सूख चने, मटर, चावल, गेहूँ जौ, बादाम, घी, मलाई, फल आदि से शक्ति की मात्रा बहुत ही कम होती है। अत: साधारण मनुष्य भी चना—मटर चबाकर माँसाहारियों की अपेक्षा अधिक बलवान बन सकता है।
शाकाहार में सभी आवश्यक तत्व पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं।
प्रोटीन—यह दूध, दही, छाछ, पनीर, फल, मेवों तथा दाल आदि में पायी जाती हैं।
चिकनाई—यह शरीर में गर्मी और शक्ति पैदा करती है। यह दूध, दही, मक्खन, तेल, बादाम, अखरोट आदि में पायी जाती है।
खनिज लवण—भोजन शक्ति को अच्छा रखते हैं। रोगों से शरीर की रक्षा करते हैं।
कार्बोहाइड्रेट—शरीर में गर्मी और शक्ति प्रदान करते हैं। यह चावल, गेहूँ, मक्का, ज्वार आदि में पाया जाता है।
कैल्शियम—हड्डियों और दाँतों को मजबूत करता है। यह दूध, दही व हरी सब्जियों में पाया जाता है।
विटामिन—शरीर को स्वस्थ और रोगों से मुक्त रखता है। यह चावल, गेहूँ, दूध, मक्खन, फल, नींबू, सेम आदि में पाया जाता है।
शाकाहार के बिना मलेरिया, फाइलेरिया, चेचक आदि रोग हो जाते हैं। इन बीमारियों में मिर्गी की बीमारी प्रमुख है। यह बीमारी मस्तिष्क में टीनिया सोलिइम नाम के कीड़े से हो जाती है। यह कीड़ा सूअर का माँस खाने से पैदा होता है। इसी प्रकार जो जानवर गन्दा पानी पीते हैं व भोजन करते हैं, उनके शरीर में अनेक कीटाणु होते हैं। इन जानवरों के माँस के खाने से यह मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और बीमारी फैला देते हैं। अधिकांश व्यक्ति जो हृदय रोगी हैं, वे वसायुक्त (चर्बी) पदार्थ अधिक खाते है। हार्ट—अटैक की बीमारी भी इसी से होती है।
जिन भोज्य पदार्थों में फाइवर की कमी होती है, उनके सेवन से वैंâसर की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है। फाइबर की मात्रा अधिकांशत: फल—सब्जियों में अधिक होती है। विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है, कि अण्डे खाने से शरीर में अनेक भयानक रोग, जैसे—ब्लड प्रेशर, जिगर, लकवा, वैंâसर आदि हो जाते हैं।
अमेरिका के उच्चकोटि के डॉक्टर ब्राउन और गोल्ड स्टीन का कहना है कि उनके देश में हार्ट अटैक की बीमारी का प्रमुख कारण भोजन में वसा का अधिक होना है। इन वैज्ञानिकों को इस खोज के लिए १९८५ में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध लेखक बर्नार्ड शॉ को जब एक बार दावत में माँसाहारी भोजन परोसा गया तो उन्होंने भोजन को यह कहकर लौटा दिया कि ‘‘मेरा पेट कब्रिस्तान नहीं है।’’
महात्मा गाँधी ने कहा कि मैं मर जाना पसन्द करूँगा लेकिन माँस नहीं खाऊँगा। शाकाहारी आन्दोलन की लहर में लन्दन के प्रिन्स चार्ल्स व राजकुमारी डाईना के साथ डांस स्टार माईकल जेक्सन तथा अभिनेत्री सारा मोईल्स व हेलीमेल्स जैसे नामी—गिरामी लोग भी बह गये हैं। लीओनारडोडा विन्सी को पश्चिमी सभ्यता का शाकाहारी कहा जाता है। उनमें बहुत दया मौजूद थी। यदि वे किसी के पास पिंजरे में बन्द पक्षी को देखते थे, तो मुआवजा देकर वह पिंजरा खरीद लेते थे। फिर उस पिंजरे के पक्षी को आकाश में उड़ा देते थे।
भौतिक विज्ञान के महान वैज्ञानिक अलवर्ट आइन्स्टाईन शाकाहारी भोजन के प्रभाव के बड़े कायल थे, कि शाकाहार हमारी प्रकृति पर गहरा प्रभाव डालता है। यदि हम शाकाहार को अपना लें तो इन्सान की दशा पलट जाये।
प्रसिद्ध पहलवान राममूर्ति, इंगलिश चैनल को तैरकर पार करने वाले विलपिकािंरग, प्रसिद्ध बल्लेबाज विजय मर्चेण्ट, टैनिस खिलाड़ी रामनाथ कृष्णन, ओलम्पिक में तीन बार स्वर्ण पदक जीतने वाले मर्रे रोज तथा उड़न सिख के नाम से जाने वाले प्रसिद्ध धावक मिलखािंसह आदि शाकाहारी ही थे।
माँसाहार के कदम रोकने के लिए शाकाहार को लोकप्रिय बनाना और उसकी स्वास्थ्य सम्बन्धी तथा चिकित्सकीय महत्ता/उपयोगिता को जनता—जनार्दन तक पहुँचाना जरूरी है। यह काम दो तरह से किया जा सकता है—
१. लोगों को कानून के प्रति जागरूक करके;
२. शाकाहार/अहिंसा की सांस्कृतिक, नैतिक, सामाजिक, आर्थिक उपयोगिता को प्रतिपादित करके।
जब तक हम आम आदमी को माँसाहार—जनित विकृतियों की तर्क—संगत जानकारी नहीं देंगे, उसे उससे विमुख करना सम्भव नहीं होगा। हमें प्रचार—माध्यमों का सहारा लेकर तथा अपना स्वयं का प्रचार—संस्थान विकसित कर पूरे विश्व में जहाँ भी शाकाहार की उपयोगिता तथा उसकी उपादेयता को प्रसारित किया जा रहा है, वहाँ से पूरी दुनिया में पैâलाना चाहिये। शाकाहार को लेकर इन दिनों काफी खोजें हुई हैं; किन्तु इस तरह प्राप्त निष्कर्षों को अभी जनता तक पहुँचाया नहीं गया है। हमें चाहिये कि हम पूरी ताकत से इन उपलब्धियों को सब तक पहुँचाये और शाकाहार का मनोयोगपूर्वक प्रचार—प्रसार करें।
इस प्रकार हम देखते हैं कि संसार को शक्ति व सुरक्षा प्रदान करने में शाकाहार की विशेष भूमिका है। जब शाकाहारी सात्विक भोजन द्वारा सात्विक विचारों की उत्पत्ति होगी। तभी मानव शान्ति की ओर अग्रसर हो सकेगा।
आज कल फास्ट-फूड आधुनिकता का पर्याय बन गए हैं और इसी आधुनिकता के चलते कब्ज, अल्सर, हदय रोग, ब्लड प्रेशर, आँखों के रोग, बहरापन, डायबिटीज, वैंâसर जैसे रोग भी बढ़ रहे हैं। पश्चिमी तरीके से तैयार फास्ट-फूड का सेवन करने वाले लोग अनजाने में रोगों को आमंत्रित कर रहे हैं। आकर्षक सुविधाजनक हर जगह उपलब्ध होने वाले फास्ट-फूड को लोगों ने जिस तेजी से अपनाया है, उतनी ही रफ्तार से लाइलाज रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। दसअसल यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आड़ में बाजार में कब्जा करने के लिए खाद्य उत्पादों को घटिया तरीके से बेचना शुरू किया है।
आमतौर पर डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ जो बाजार में लंबे समय तक टिके रहते हैं, हानिकारक होते हैं। बिस्कुट, पेस्ट्री, नमकीन, अचार, मिठाइयां इत्यादि जिन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए रसायनों का इस्तेमाल होता है शरीर के नाजुक अंगों को क्षति पहुँचाते हैं।
डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। आजकल बाजारों में जैसे चटचटे, जायकेदार, व्यंजन मिलने लगे हैं, जिन्हे जब चाहे, जहॉ खोलिये और खाइये। कहीं भी, कभी भी लजीज व्यंजन के भरोसे डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों को पश्चिमी तर्ज पर परोसा जा रहा है, जिसके चलते भारतीय व्यंजन, फीके पड़ने लगे हैं। महंगा फास्ट फूड खरीरकर अपनी सेहत बिगाडने वाले लोग आधुनिकता का दंभ भरते नजर आते हैं। मगर धीरे-धीरे इनका दुष्प्रभाव शुरू होता है, तब चिकित्सकों के भरोसे वे अपने जीवन की गाड़ी घसीटने को मजबूर हो जाते हैं।
नूडल्स खाने में स्वादिष्ट इसलिए लगता है, क्योंकि इसमें मिलाया जाने वाला रंग रसायन स्वादग्राही कोशिकाओं को भ्रमित कर देता है। इस स्वाद रहित रसायन से नूडल्स अधिक समय तक तरोताजा बना रहता है। लंबे समय तक नूडल्स के सेवन से स्वादग्राही कोशिकाएं अपनी प्राकृतिक शक्ति खो देती हैं परिणामत: भूख न लगने की बीमारी हो जाती है। स्वाद को बढ़ाने वाले और भोजन को तरोताजा रखने वाले रसायन भी घातक हैं, ‘अजीनोमोटो’ नामक रसायन दुकानों में सहजता से उपलब्ध है यह बासी खाद्य पदार्थों को तरोताजा बना देता है। लेकिन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक सिद्ध होता है शाकाहारियों को तो इससे अवश्य बचना चाहिये क्योंकि ये जैविक चर्बी से बनता है। भोजन में स्वाद को बढ़ाने वाले सेक्रीन, साइक्लोमेट, एमेसल्फ, तीनों कैंसरकारी माने गए हैं।
फास्ट-फूड में वसा और कार्बोहाइड्रेट की अधिकता और प्रोटीन नहीं के बराबर होता है। इसे स्वादिष्ट और आकर्षक बनाया जाता है, जिसे खाकर बच्चे मोटापे का शिकार हो जाते हैं। फास्ट-फूड खाने वाले बच्चों में विशेष प्रकार के ऐंजाइम की कमी भी हो जाती है, जिससे बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास रुक जाता है। लीवर खराब होने के साथ दस्त अधिक लगने लगते हैं लौह तत्व व विटामिनों की कमी से होने वाले रोग पनपने लगते हैं।
डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों मेंं जिन खतरनाक रसायनों को मिलाया जाता है, उनकी एक लंबी सूची है। खाद्य पदार्थों को ऐसे रसायन तरोताजा, सुगंधित आकर्षक बनाने का काम करते है। शोधों के जरिए बताया है कि इसके प्रभाव से बच्चों की छाती में धड़कन, दमा या लगातार चलने वाला सिरदर्द हो सकता है। इसकी अत्यधिक मात्रा मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहॅुचाती है, जिससे बच्चों की याददास्त कमजोर हो जाती है। अतत: चिड़चिड़ापन क्रोधित होना जैसे रोग भी इनसे बढ़ रहे हैं।
बच्चे फास्ट-फूड की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। भारतीय बच्चों में डाईबिटीज ज्यादा बढ़ रही है जो जिंदगी भर के लिए पंगु बना देती है। बर्गर, फेंच, प्राईज, चाउमीन, पोटेटो चिप्स जैसे खाद्य बच्चे होड़ में खाते हैं। ऐसा खाद्य खाने वालों का जीवन स्तर भी समाज में ऊँचा समझा जाता है। दरअसल इसमें विटामिन सी, आयरन फोलेट और रिबोप्लोविन की कमी होती है, क्रीम होने से वैâलोरी, वसा और सोडियम की मात्रा अधिक होती है।
शरीर के लिए जो पोषक तत्त्व होना चाहिए वे नहीं होते और नतीजे में इससे पाचन तंत्र कमजोर होता है। महंगा फास्ट फूड खाकर शरीर को रोगों का घर बनाना समझदारी नहीं हैं फास्ट-फूड बच्चों का आहार कभी न बने, अन्यथा उनका भविष्य चौपट हो सकता है। इसका ध्यान जरूर रखना चाहिए।
कुल मिलाकर ये आहार भारतीय मौसम, परिस्थिति और संस्कृति के विपरीत है। हमारे यहाँ, उष्ण-आर्द्र मौसम रहता है। इस मौसम में प्राकृतिक, सुपाच्य और स्वाभाविक स्वाद वाली देशज वस्तुएं ही आहार की जानी चाहिये, लेकिन देखा रहा है कि एक तरफ कुपोषण का शिकार बच्चे हैं तो दूसरी तरफ फास्टफूड से बीमार बच्चे हैं। अत: भविष्य में देश का नागरिक वैâसा होगा? विचार करना चाहिए।
जैन दृष्टि : जैन दर्शन ने इस आधुनिक स्थिति को पहले ही पढ़ लिया था। तभी तो ‘भगवती आराधना ग्रंथ’ में लिखा है कि-
होई णरो णिल्लज्जो पयहइ तवणाण दंसणं चरित्तं।
आमिस कलिणा ठइओ छायं मइलेइ य कुलस्स।।
अर्थात जब आहार मर्यादा खोकर मनुष्य निर्लज्ज हो जाता है तब तप, ज्ञान, दर्शन और चारित्र की मर्यादा भी तोड़ देता है। ऐसा निर्लज्ज मानव कुल की लाज भी गंवा बैठता है। शायद हम भारतीय भी विदेशियों की देखा—देखी भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार भूलकर चाहे जो खाने को तत्पर होकर अपने राष्ट्रीय कुल, अपने सांस्कृतिक वैभव पर कलंक लगा रहे हैं। हमें इससे उबर कर स्वयं को और अपनी भावी पीढ़ी को बचाना चाहिये।
‘शाक’ शब्द संस्कृत की ‘शक्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है योग्य होना, समर्थ होना, सहज करना। शक् धातु से शक्नोति इत्यादि शब्द बने हैं। शाक शब्द का अर्थ है-बल, पराक्रम, शक्ति एवं शक्त के मायने हैं -योग्य, लायक, ताकतवर। इस तरह शाकाहार का वाच्यार्थ हुआ ऐसा आहार जो मनुष्य की योग्यताओं का विकास करें और उसे बलशाली तथा पराक्रमी बनाये।
वेजीटेरियन शब्द लेटिन भाषा के ‘वेजीटस’ शब्द से जन्मा हैं, जिसका अर्थ है-स्वस्थ, समग्र, समर्थ, विश्वस्त, ठोस, परिपक्व, जीवन, ताजा। फ़्रांसीसी में ‘वेजीटेबिल’ शब्द का अर्थ है जीवन-संचारक, अंत जीवन से भरपूर।
महान् वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटाईन विशुद्ध शाकाहारी थे वे कहा करते थे कि शाकाहार का हमारी प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सन् १९४५ में रसायन शास्त्र विषयक नोबल पुरस्कार से सम्मानित डा.अर्तुरी वर्ततेन (हेलिंस्की, फिनलैंड में जवे रासायनिक शोध संस्थान के निदेशक) ने कहा है कि दुग्ध शाकाहारियों को फल, साग-सब्जी, दाल, वसा, न्यूनित दूध आदि से तमाम आवश्यक पोषक तत्व सहज ही मिल सकते हैं।
अमेरिका फूड एंड न्यूट्रीशन बोर्ड की नेशनल रिसर्च कौंसिल ने साफ कहा है कि अधिकांश पोषण विज्ञानी इस तथ्य से सहमत हैं कि यदि शाकाहार को यथोचित संयोजन किया जाए तो वह स्वयं में सम्पूर्ण /पर्याप्त आहार है। दुनिया के प्राय: सभी देशों में शुद्ध शाकाहारियों ने अपना स्वास्थ्य उत्तम प्रकार से बनाये रखा है।
एक वैज्ञानिक खोज ने यह सिद्ध कर दिया है कि ‘शाकाहार में मांस से पांच गुणा अधिक शक्ति है’-(ओरियन्टल वॉच्मेन पूना पृ.३५।)
संयुक्त राज्य अमेरिका में डेढ़ करोड़ शाकाहारी लोग १९९९ तक हो चुके थे। गेलप पोल अनुमान के अनुसार यू.के.में हर हफ्ते ३ हजार लोग शाकाहारी बन जाते हैं। जिनकी संख्या करोड़ो में पहुँच चुकी है।
शाकाहारियोें का अच्छा स्वास्थ्य उनके आहार का परिणाम है यह विचार बर्लिन वेजीटेरियन स्टडी की जांच पड़ताल का है। जर्मन स्वास्थ्य दफ्तर के सामाजिक औषध और महामारी विज्ञान संस्थान ने १९८५ में उपर्युक्त अध्ययन शुरू किया था। अध्ययन के अनुसार शाकाहारियों का संतुलित स्वास्थ्य उसके मांस मछली आदि न खाने और मोटे रेशे वाले तथा कम कोलेस्टेरोल वाले अन्न उत्पादनों के सेवन करने का परिणाम है।
वीगन (शुद्ध शाकाहारी) जीवन शैली को एक वाक्य में परिभाषित करते हुए क्रूएल्टी प्रâी गाइड टू लन्दन के संपादक स्लेक्स बुर्क ने कहा है कि ‘‘एक शाकाहारी न तो किसी जन्तु के किसी अन्तर्वर्ती भीतरी भाग को खाता है और न ही उसके बाहरी भाग को ओढ़ता-पहनता है।’’
सौन्दर्य देखने वाले की दृष्टि में होता है जिससे हमें बहुत अनुराग होता है, उसको हम सुन्दर मानते हैं। अपनी माँ या दादी, नानी क्या आपको सुन्दर नहीं लगतीं ? लगतीं है, पर इन्होंने कोई कॉस्मेटिक तो प्रयोग किये ही नहीं—सूती साड़ी, ढका हुआ सिर और लाल सिन्दूर की बिन्दी; बस हो गया इनका व्यक्तित्व गरिमापूर्ण।
जहाँ सौन्दर्य की सारी परिभाषायें अपने अर्थ खोने लगती है, वह है आज का चिन्तन, आज के मन की पवित्रतायें, उमड़ता हुआ मातृत्व और जीवमात्र के प्रति करुणा। आप कृपया यह तर्क मत दीजिये कि मेरे अकेले के त्याग से कितने जीव बच जायेंगे ? यह सोचने का सबसे घटिया तरीका है।
आपको यह संकल्प करना है कि आप बस ‘वही हैं’ जो जीवन में ठान लेते हैं, उसे पूरा करते हैं और आज पशु हित के लिये, जीवन के सम्मान के लिये बिना एक पैसा खर्च किये बस जरा—सा अपनी जीवन—शैली को परिवर्तित करना है। यह ना खरीद कर, वह खरीदना है। नीचे दिये गये कुछ घर में ही तैयार किये गये पूर्णत: अिंहसक घरेलू सौन्दर्य प्रसाधन के बारे में जानें, जो ‘‘एक अहिंसात्मक जीवनशैली’’ नामक पुस्तक के आधार से दिये जा रहे हैं—
आफ्टर शेव—शेव करने के बाद फिटकरी का गीला किया हुआ टुकड़ा स्किन पर मलें।
क्लीिंजग मिल्क—एक बड़ा चम्मच दही और एक चाय की चम्मच नींबू का रस मिलायें और रुई की सहायता से चेहरे पर लगायें, थोड़ी देर बाद टिश्यू पेपर से चेहरा पोंछ लें।
डीओडॅरॅन्ट—आधी चाय की चम्मच पिसी हुई फिटकरी को २०० स्त् गरम पानी में मिलाकर उपयोग करें।
डैन्ड्रफ क्योर (डैन्ड्रफ हटाने वाला)—चार चम्मच अजवाइन पानी में उबालें और छानकर ठण्डा करें और शैम्पू करे हुए नम बालों में लगायें और धीरे—धीरे मालिश करें और फिर पानी से न धोएँ।
फेस पैक—एक चाय का चम्मच बेसन, थोड़ी सी मलाई और पानी मिक्स करके चेहरे पर लगायें, १०—१५ मिनट के बाद धो दें और तैलीय त्वचा के लिए सप्ताह में दो बार मुल्तानी मिट्टी का फेस पैक उपयोग करें। इसका पेस्ट घमौरी को ठीक करता है।
फेशियल स्क्रब—जई का आटा ५० ग्रा. ३-४ चम्मच दूध मिलाकर पेस्ट बनायें और चेहरे पर लगायें। इसके बाद गरम पानी से चेहरा धो लें।
बालों का गिरना—(१) शुद्ध बिना सेंट मिला हुआ नारियल का तेल सिर पर १० दिन तक रोज घिसें और फिर इस प्रक्रिया को हफ्ते में एक बार दोहराते रहें।
(२) सिर धोने के बाद अन्त में चाय का पानी (बिना चीनी और दूध का) से सिर धोने से बालों में चमक आती है।
बालों का तेल और कण्डीशनर—एक किलो नारियल का चूरा लगभग ३ लीटर पानी में मिलाकर उबालें। जब तक कि तेल अलग होकर सतह पर न तैरने लगे, उसे छानकर ठण्डा करके बोतल में भर लें। यह शुद्ध नारियल का तेल सर्वोत्तम हेयर कण्डीश्नर का काम करता है।
हेयर स्प्रे—तीन नींबूओं को थोड़े से पानी में उबाले। जब छिलका नरम हो जाये, तो अच्छे से मिलाकर ठण्डा करके स्प्रे बोतल में भरकर उपयोग करें।
मसाज ऑइल—जैतून का तेल, सरसों का तेल।
मॉइश्चुराइिंजग लोशन—एक चुकन्दर की पत्तियाँ दो कप डिस्टिल वाटर में १० मिनट उबालें, ठण्डा होने तक छोड़ दें और एक बोतल में छानकर भर लें। वैसलीन और पेट्रोलियम जैली सबसे अच्छे त्वचा के नमीकारक होते हैं।
माउथवॉश—एक चाय का चम्मच खाने का सोडा, इतना ही नमक एक गिलास गरम पानी में घोलें और फिर एक कप सिरका, १० लौंग और आधा कप सौंफ मिलाकर, इसे ठण्डा करके माउथ वॉश के रूप में प्रयोग करें।
परफ्यूम—चमेली, चम्पा, मोगरा, गुलाब, चन्दन, लेवेंडर आदि के प्राकृतिक सुगन्धित तेल परफ्यूम का काम कर सकते हैं।
मुहाँसों से बचने का उपाय—(१) तुलसी के पत्ते, नींबू के रस के साथ पीसकर यह पेस्ट चेहरे पर लगाने से मुहाँसों की रोकथाम होती है।
(२) कील—मुहाँसों से पीड़ित लोग २५० ग्राम मुल्तानी मिट्टी, इतना ही चन्दन पाउडर व ५० ग्राम पिसी हुई हल्दी मिला लें। इसकी तीन चम्मच का पेस्ट तैयार कर उपयोग करें। इससे न केवल कील—मुहाँसे ही साफ होंगे, बल्कि चेहरे का रंग भी साफ हो जायेगा।
झुर्रियाँ रोकने का घरेलू नुस्खा—गाजर का पेस्ट और दूध झुर्रियों को रोकने में सहायक होते हैं।
टूथपेस्ट—(१) तीन हिस्सा खाने का सोडा और एक हिस्सा पानी। यह विधि सिर्फ वयस्कों के लिए उपयोगी है, क्योंकि इसमें फ्लोराइड नहीं होता जो बच्चों के दाँतों के लिए आवश्यक होता है।
(२) दाँतों से टार—टार और प्लाक हटाने के लिए १ टेबिल स्पून बेिंकग पावडर में एक चुटकी नमक मिलायें।
टोनर—एक चम्मच खीरा का रस, एक चम्मच टमाटर का रस, एक चम्मच नींबू का रस, एक चम्मच तरबूज का रस मिलाकर चेहरे पर लगायें। सौन्दर्य प्रशाधन में पशुओं के वध जैसा पाशविक कृत्य तो आवश्यक ही नहीं है।
भला न होगा इस देश का, पशुओं की अवैध कटाई से।
भारत का उत्थान न होगा, मांस निर्यात की कमाई से।।
पाबन्दी नहीं पशु कत्ल पर, क्या भला उस कानून से।
क्या चलेगी सरकार वह, जो पैसा कमावे खून से।।
हिंसा का जो विधान करे, वह संविधान किसे प्यारा।
हिंसा पर प्रतिबन्ध लगाना, है, अधिकार हमारा।।