चमड़े की वस्तुओं का उपयोग न करें। हाथी दाँत से बनी वस्तुओं का इस्तेमाल न करें। नहाने-धोने में उन साबुनों का उपयोग करें, जिनमें चर्बी न हो। रसोई तथा मंदिरों में पानी छानने हेतु एवं अन्य कार्यों में खादी का कपड़ा काम में लें, क्योंकि दूसरे कपड़ों में कलफ की अशुद्धि रहती है। उन दुकानों से कोई सामान न खरीदें, जिसमें अण्डे बेचे जाते हों। टूथपेस्टों का उपयोग न करें अथवा वे टूथपेस्ट ही काम में लें जिन पर ‘वीगन’ अथवा ‘पशु उत्पाद रहित’ शब्द अंकित हो। महंगी वाली आइसक्रीम, फूटला, मिंटोस, रौले, मास्टिकेबिल्स का उपयोग न करें। ‘पी एण्ड जी’ के उत्पाद काम में न लें। # जिलेट ब्लैडों का इस्तेमाल न करें। कैप्सूल्स न खाएँ। अनिवार्य होने पर अन्दर की औषधि खाएँ, कैप्सूल फेंक दें। # लिपिस्टिक, शैम्पूज आदि का भूलकर भी उपयोग न करें। रोओं से बनी वस्तुएँ न खरीदें और न ही उपहार में दें। सेंट, डियोडरेंट्स इत्यादि का इस्तेमाल न करें। # जहाँ तक संभव हो चीनी के बर्तन काम में न लें। इनकी जगह काँच अथवा धातु के पात्रों का उपयोग करें। # सरेस का उपयोग न करें। जिन एलोपैथिक दवाइयों में हीमोग्लोबिन, लिव्हर, पैंक्रियाज आदि का उल्लेख हो, उनका सेवन न करें क्योंकि ये दवाइयाँ मांसाहारी होती हैं।
अहिंसक सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग करें
‘ब्यूटी विदाउट क्रूएलिटी’ संस्था द्वारा निम्न प्रसाधन सामग्रियों की सूची बनाई गई है जिसमें केवल वनस्पति पदार्थ ही प्रयुक्त होते हैं तथा जिनके बनाने व जाँचने में किसी भी पशु-पक्षी को कष्ट नहीं दिया जाता है। उन्हीं सामग्रियों को उपयोग में लें। जैसे-(ब्रॉण्ड) नेलपॉलिश लक्मे, टीना पाउडर/फेश पाउडरसिन्थॉल, फस्का, गंगा, मार्बल, अहिंसा, नीम, कुटीर, शिकाकाई, क्राउनिंग, ग्लोरी, मैसूर-चंदन, संसार, चन्द्रिका, मोती, हमाम, जय, ओ.के., रिया, नीको, विजिल # टूथपेस्टप्रॉमिस, बबूल, विक्को वज्रदन्ती # तेल आदिकेलेमाइन (लक्मे) अलमैसा, नारियल तेल, आँवला, ब्राह्मी (वैद्यनाथ, झण्डू) चन्दन तेल। क्रीमकोल्ड क्रीम (लक्मे), टियारा, विक्को # परफ्यूमशालीमार, लक्मे शैम्पूआर्निका, सन, ब्यूटी (मिस्टी) आफ्टर शेव लोशनकन्सरि, लक्मे, सन लिपिस्टिक लक्मे, टिप्स एण्ड टोज।
पानी छानकर पियें
बिना छने हुए पानी की एक बूंद में ३६४५० जीव वैज्ञानिकों ने बताये हैं। ये जीव दिखाई नहीं देते हैं। अनछने पानी को पीने से स्वास्थ्य दूषित होता है, जिससे अनेक रोग हो जाते हैं, इसलिए जल छानकर पीना चाहिए। बिना छना पानी पीने से अनंत जीवों का घात होता है। मोटे कपड़े के दोहरे छन्ने से छानना चाहिए, और छानने की क्रिया के पश्चात् बिलछानी (कपड़े को अलग छने पानी से सावधानी से धोना) पानी में डाल देना चाहिए ताकि छन्ने के ऊपर के जीवों की रक्षा अपने विवेक और सावधानी से हो। कुएँ के पानी की बिलछानी कुएं में छोड़ना चाहिए। इस कार्य के लिए बिलछानी (अनछने पानी) के अशुद्ध पानी की बाल्टी के दोनों छोर में रस्सी बाँध कर कुएँ में छोड़ना चाहिए। छना हुआ पानी ४८ मिनिट तक जीव रहित रहता है। इसके बाद पुन: उसमें जीव उत्पन्न हो जाते हैं। अत: उसे फिर से छानना चाहिए। छने हुए पानी में लौंग, इलायची आदि डालने से पानी प्रासुक हो जाता है। उसकी मर्यादा ६ घंटे की है। गर्म किये हुए जल की मर्यादा २४ घंटे की होती है। आजकल रेडियो, टी.वी. पर भी हर समय यही चेतावनी एवं सलाह दी जाती है कि पानी छानकर पीना चाहिए। पानी छानकर पीने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है और धर्म का पालन होता है। कहा जाता है कि रात का रखा हुआ चार गिलास पानी (गर्म किया हुआ प्रासुक जल) सुबह सूर्योदय से पूर्व पीने से कई बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। पानी पीने के ४५ मिनिट तक कुछ न खायें। इसके प्रयोग से ठीक होने वाली बीमारियाँ मधुमेह (डायविटीज), ब्लडप्रेशर, जोड़ों का दर्द, हृदय रोग, बेहोशी, मेनोनजाईटीस, पेशाब की समस्त बीमारियाँ, पथरी, धातुस्राव, गर्भाशय कैंसर, बवासीर, पेट के रोग, मानसिक दुर्बलता, त्वचा पर झुर्रियाँ, लकवा, खाँसी, कफ, दमा, आँखों की बीमारियाँ, प्रदर, एसीडिटी, सूजन, बुखार, फोड़ा-फुन्सी, कील मुँहासे, रक्त की कमी, मोटापन, टी.बी., लीवर के रोग, अनियंत्रित मासिक स्राव, कफ जन्य रोग, गेस्ट्रिक ट्रबल एवं कमर से संबंधित रोग हैं। इन रोगों को दूर कर अपना शरीर स्वस्थ बनावें और अपने पड़ोसियों को भी इन रोगों से मुक्ति पाने हेतु छना पानी पीने की प्रेरणा प्रदान करें।