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आकाश :!
November 27, 2015
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[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] ==
आकाश :
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चेतनारहितममूत्र्तं अवगाहनलक्षणं च सर्वगतम्। लोकालोकद्विभेदं, तद् नभोद्रव्यं जिनोद्दिष्टम्।।
—समणसुत्त : ६३५
जिनेन्द्र देव ने आकाश द्रव्य को अचेतन, अमूर्त, व्यापक और अवगाह लक्षण वाला कहा है। लोक और अलोक के भेद से आकाश दो प्रकार का है।
तस्य मुखोद्गतवचनं, पूर्वापरदोषविरहितं शुद्धम्। ‘आगम’ इति परिकथितं, तेन तु कथिता भवन्ति तत्त्वार्थ:।।
—समणसुत्त : २०
अर्हत् के मुख से उद्भूत पूर्वापरदोषरहित शुद्ध वचनों को आगम कहते हैं। उस आगम में जो कहा गया है, वह सत्यार्थ है।
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