गुरु की तीन प्रदक्षिणा देकर कम से कम एक हाथ दूर से गवासन से बैठकर प्रतिज्ञा करें।
नमोऽस्तु आचार्यवंदनायां……सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं।
(पुनः पंचांग नमस्कार करके खड़े होकर तीन आवर्त एक शिरोनति करके मुक्ताशुक्ति मुद्रा से वृहत् या लघु सामायिक दण्डक पढ़ें। तीन आवर्त एक शिरोनति करके २७ उच्छवास में ९ बार णमोकार मंत्र का जाप्य करें पुनः पंचांग नमस्कार करके खड़े होकर तीन आवर्त एक शिरोनति करके वृहत् या लघु थोस्सामि स्तव पढ़ें। पुनरपि तीन आवर्त एक शिरोनति करके वंदना मुद्रा से लघु सिद्धभक्ति पढ़ें।)
लघु सिद्धभक्ति-
सम्मत्तणाणदंसणवीरियसुहुमं तहेव अवगहणं।
अगुरुलघुमव्वावाहं, अट्ठगुणा होंति सिद्धाणं।।१।।
तवसिद्धे णयसिद्धे, संजमसिद्धे चरित्तसिद्धे य।
णाणम्मि दंसणम्मि य, सिद्धे सिरसा णमंसामि।।२।।
पुनः गवासन से बैठकर अंचलिका पढ़ें-
इच्छामि भंते! सिद्धभत्तिकाउस्सग्गो, कओ तस्सालोचेउं सम्मणाण-सम्मदंसण-सम्मचारित्तजुत्ताणं अट्ठविहकम्मविप्प-मुक्काणं अट्ठगुणसंपण्णाणं, उड्ढलोयमत्थयम्मि पइट्ठियाणं, तव-सिद्धाणं, णयसिद्धाणं, संजमसिद्धाणं, चरित्तसिद्धाणं, अतीताणा-गदवट्टमाणकालत्तयसिद्धाणं, सव्वसिद्धाणं, णिच्चकालं, अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्äखओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।
नमोस्तु आचार्यवंदनायां……श्रुतभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं।
(पूर्वोक्त विधि से सामायिक दण्डक, ९ जाप्य और थोस्सामिस्तव करके वंदना मुद्रा से लघुश्रुतभक्ति पढ़ें।)
लघु श्रुतभक्ति-
कोटीशतं द्वादश चैव कोट्यो, लक्षाण्यशीतिस्त्र्यधिकानि चैव।
पंचाशदष्टौ च सहस्रसंख्यमेतच्छ्रुतं पंचपदं नमामि।।१।।
अरहंतभासियत्थं, गणहरदेवेिंह गंथियं सम्मं।
पणमामि भत्तिजुत्तो, सुदणाण – महोवहिं सिरसा।।२।।
पुनः गवासन से बैठकर अंचलिका पढ़ें-
अंचलिका-इच्छामि भन्ते! सुदभत्तिकाओसग्गो कओ तस्सालोचेउं अंगोवंगपइण्णए पाहुडय-परियम्मसुत्त-पढमाणिओग-पुव्वगय-चूलिया चेव सुत्तत्थयथुइ-धम्म-कहाइयं णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वन्दामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसम्पत्ति होउ मज्झं।
नमोस्तु आचार्यवंदनायां……………..आचार्यभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं।
(पूर्वोक्तविधि से सामायिक दंडक, ९ जाप्य और थोस्सामिस्तव पढ़कर वंदना मुद्रा से लघु आचार्यभक्ति पढ़ें।)
लघु आचार्यभक्ति-
श्रुतजलधिपारगेभ्यः, स्वपरमतविभावनापटुमतिभ्यः।
सुचरिततपोनिधिभ्यो, नमो गुरुभ्यो गुणगुरुभ्यः।।१।।
छत्तीसगुणसमग्गे, पंचविहाचारकरणसंदरिसे।
सिस्साणुग्गहकुसले, धम्माइरिए सदा वन्दे।।२।।
गुरुभक्तिसंजमेण य तरंति संसारसायरं घोरं।
छिण्णंति अट्ठकम्मं, जम्मणमरणं ण पावेंति।।३।।
ये नित्यं व्रतमंत्रहोमनिरता, ध्यानाग्निहोत्राकुलाः।
षट्कर्माभिरतास्तपोधनधनाः साधुक्रियाः साधवः।।
शीलप्रावरणा गुणप्रहरणाश्चन्द्रार्कतेजोऽधिकाः।
मोक्षद्वारकपाटपाटनभटाः, प्रीणंतु मां साधवः।।४।।
गुरवः पांतु नो नित्यं, ज्ञानदर्शननायकाः।
चारित्रार्णव गम्भीरा:, मोक्षमार्गोपदेशकाः।।५।।
पुनः गवासन से बैठकर अंचलिका पढ़ें-
अंचलिका-इच्छामि भंते! आइरियभत्तिकाओसग्गो कओ तस्सालोचेउं सम्मणाणसम्मदंसणसम्मचरित्तजुत्ताणं पंचविहाचाराणं आइरियाणं, आयारादिसुदणाणोवदेसयाणं उवज्झायाणं, तिरयण-गुणपालणरयाणं सव्वसाहूणं, णिच्चकालं अंचेमि पूजेमि वन्दामि णमंसामि दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाहि-मरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।
विशेष-यह उत्कृष्ट गुरुवंदना विधि है। कदाचित् गवासन से बैठे-बैठे भी यह सारी विधि की जा सकती है अथवा कृतिकर्मविधि-सामायिक दण्डक और थोस्सामिस्तव के बिना भी मात्र ‘‘नमोस्तु आचार्यवंदनायां….सिद्धभक्ति-कायोत्सर्गं करोम्यहं’’ ऐसा बोलकर ९ बार णमोकार मंत्र का जाप्य करके तीनों भक्तियाँ पढ़कर भी गुरुवंदना की जाती है।
(जो साधु या श्रावक हिन्दी में सामायिक करना चाहते हैं। देववन्दना अपरनाम सामायिक का ही यह पद्यानुवाद है। इसे पढ़कर जिनमंदिर में प्रवेश कर ‘नि:सही’ का उच्चारण कर दर्शनस्तोत्र पढ़कर सामायिक करें अथवा अपनी वसतिका में इसका एक श्लोक पढ़कर भी आगे की विधि से सामायिक करें।)