प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण मूल आचार्य परम्परा के वर्तमान सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज ने भारत वसुंधरा के बीचोंबीच स्थित मध्यप्रदेश राज्य के जिला नरसिंहपुर में गोटेगांव (श्रीधाम) नगर में सन् १९६३ में ९ सितम्बर को श्री भगवानदास जी जो कि नेताजी के नाम से प्रसिद्ध थे। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शांति देवी जी की कुक्षि से जन्म लिया। दिगम्बर जैन परवार जाति के मॉडल गोत्रीय परिवार में जन्मे सबसे छोटे पुत्र ‘‘दीपक’’ ने अपने नाम को सार्थक करते हुए कुलदीपक बनकर अपने नगर का गौरव बढ़ाया है।
आपके गृहस्थावस्था के ४ बड़े भाई व १ बहन हैं। लौकिक शिक्षा बी.ए. तक प्राप्त करने के बाद धार्मिक संस्कारों के कारण आपने १० फरवरी १९८६ को आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत को धारण कर गृहत्याग किया। आपकी गृहस्थावस्था की बड़ी बहन ब्र. कु. भारती थीं, जो वर्तमान में गणिनी आर्यिका श्री सुभूषणमती माताजी के रूप में इसी परम्परा में दीक्षित होकर धर्मप्रभावना कर रही हैं।
आपको हिन्दी के साथ संस्कृत व कन्नड़ भाषा का भी अच्छा ज्ञान है। ब्रह्मचारी अवस्था में आपने पंचम पट्टाचार्य श्री श्रेयांससागर जी महाराज के संघ में रहकर धार्मिक अध्ययन किया। इस परम्परा की प्राचीन दीक्षित आर्यिकारत्न गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा व प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के सत्प्रयास से आपने इस परम्परा के षष्ठम् पट्टाचार्य श्री अभिनंदनसागर जी महाराज के करकमलों से झीलों की नगरी उदयपुर (राज.) में तिथि फाल्गुन शुक्ला एकादशी, २६ फरवरी १९९९ को दीक्षा लेकर मुनि अनेकांतसागर बने। संघ से अलग विहार कर धर्मप्रभावना करते हुए पुन: सन् २०१४ में गुरु की अस्वस्थता में उनकी वैय्यावृत्ति करने के लिए संघ में आये।
पुन: इनके मस्तक पर स्वयं गुरु ने परम्परा की वरिष्ठ आर्यिका गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी व अन्य वरिष्ठ साधुओं की अनुमोदना से अपने करकमलों से २७ मई २०१४ को राजस्थान के पाड़वा नगर में बालाचार्य पद के संस्कार करके परम्परा के भावी पट्टाचार्य पद की घोषणा की। गुरु की समाधि के पश्चात् सन् २०१५ में माघ कृ. चतुर्दशी-१९ फरवरी को चतुर्विध संघ ने मिलकर आपको परम्परा के सप्तम पट्टाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया।
महाराष्ट्र प्रान्त के मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र में विश्व की सबसे ऊँची १०८ फुट भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा जो पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से निर्मित हुई है फरवरी सन् २०१६ में उसकी महापंचकल्याणक प्रतिष्ठा में भी आपका प्रमुख सान्निध्य प्राप्त हुआ। वर्तमान में आप अपने चतुर्विध संघ के साथ विहार कर धर्मप्रभावना कर रहे हैं।