धुन- नागिन……….
जय जय गुरुवर, हे सूरीश्वर, श्री शान्तिसिन्धु मुनिराज की,
मैं आज उतारूँ आरतिया।
जग में महापुरुष युग का, परिवर्तन करने आते।
अपनी त्याग तपस्या से वे, नवजीवन भर जाते।।
गुरू जी नवजीवन…………..
जग धन्य हुआ, तव जन्म हुआ, मुनि परम्परा साकार की,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।१।।
कलियुग में साक्षात् मोक्ष की, परम्परा नहिं मानी।
फिर भी शिव का मार्ग खुला है, जिस पर चलते ज्ञानी।।
गुरू जी जिस पर………..
मुनि पद पाया, पथ दिखलाया, चर्या पाली जिननाथ की,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।२।।
मुनि देवेन्द्रकीर्ति गुरुवर से, दीक्षा तुमने पाई।
भोज ग्राम माँ सत्यवती की, कीर्तिप्रभा पैâलाई।।
गुरू जी कीर्तिप्रभा……….
हे शान्तिसिन्धु, हे विश्ववन्द्य, तव महिमा अपरम्पार थी
मैं आज उतारूँ आरतिया।।३।।
परमेष्ठी आचार्य प्रथम तुम, इस युग के कहलाए।
सदियों सोई मानवता को, आप जगाने आए।।
गुरू जी आप…………
तपमूर्ति बने, कटुकर्म हने, उत्तम समाधि भी प्राप्त की,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।४।।
श्री चारित्रचक्रवर्ती के, चरणों में वन्दन है।
अहिविष भी ‘‘चन्दनामती’’, तव पास बना चन्दन है।।
गुरू जी…………
भव पार करो, कल्याण करो, मिल जावे बोधि समाधि भी,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।५।।