आज के मानव में कलियुग का रूप दिखाई देता है : काव्य रूपक
तर्ज-एक थी राजुल………………..
आज के मानव में कलियुग का, रूप दिखाई देता है।
राम की धरती पर रावण का, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।
कहते हैं माँ की ममता, बच्चे पर सदा बरसती है।
कोई कह नहीं सके कि वह, बच्चे की हत्या करती है।।
लेकिन आज की माँ में नागिन, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।१।।
सुना है कितना ही धन दे दो, किन्तु न प्राण कोई दे देगा।
क्योंकि प्राण के बदले मानव, दुनिया में क्या सुख देगा।।
लेकिन मानव बम में विष का, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।२।।
देखो गौ माता बस तृण खा, मीठा दूध पिलाती है।
फिर भी कतलखाने में उन पर, छुरी चलाई जाती है।।
मानव में ही हत्यारों का, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।३।।
खेत में खेती कर किसान, मेवा फल अन्न उगाता है।
कलियुग में नर अण्डा मछली, को कृषि कहकर खाता है।।
जिव्हालोलुपता में उन्हें, सुख चैन दिखाई देता है।।
आज के.।।४।।
तप संयम अध्यातम का, निर्यात जहाँ से हुआ सदा।
आज माँस निर्यात वहाँ से, करता मानव कलियुग का।।
इस भौतिक संपति में हिंसक, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।५।।
अपने शील से सीता ने जहाँ, नीर बनाया अग्नी को।
आज की नारी फिल्मों में, कर रही प्रदर्शित अंगों को।।
अब सीता में सूपनखा का, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।६।।
मात-पिता की विनय जहाँ पर, जन्मघूंटि से मिलती है।
आज वहाँ भी उनको अपनों, की प्रताड़ना मिलती है।।
इस कलियुग के रिश्तों में, अपमान दिखाई देता है।।
आज के.।।७।।
कलियुग में भी सतयुग का दर्शन चाहो हो सकता है।
एक कहानी से देखो, युगपरिवर्तन हो सकता है।।
इन्सानी भावों में प्रभु का, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।८।।
देखो इक राजा ने सुन्दर, बड़ा सरोवर बनवाया।
उसको दूध से भरने हेतू, उसने ढिंढोरा पिटवाया।।
सभी दूध डालें उसमें, आदेश सुनाई देता है।।
आज के.।।९।।
राजाज्ञा पाकर जनता ने, अपने हर्ष को दरशाया।
सबके सपनों में अब मानो, क्षीर का सागर लहराया।।
लेकिन एक व्यक्ति के मन में, खोट दिखाई देता है।।
आज के.।।१०।।
सोचा उसने सभी दूध, डालें मैं तो जल डालूँगा।
पता किसी को नहीं लगेगा, चतुराई यदि कर लूँगा।।
रात्री में जल डाल के वह, संतुष्ट दिखाई देता है।।
आज के.।।११।।
कलियुग का अभिशाप यह देखो, सबके मन में भी आया।
पानी डाल के दूध सरोवर, को देखना सबने चाहा।।
इसीलिए पूरा सरवर, जल भरा दिखाई देता है।।
आज के.।।१२।।
चला देखने राजा खुश हो, दूध भरा सरवर अपना।
अपनी प्यारी प्रजा को लेकर, सोचा पूर्ण हुआ सपना।।
मात्र कल्पना करके वह, संतुष्ट दिखाई देता है।।
आज के.।।१३।।
राजा पहुँचा निकट सरोवर, हक्का बक्का हुआ तभी।
लाल आँख करके मंत्री से, बोला आज्ञा क्यों न पली।।
बेचारे मंत्री में डर का, भूत दिखाई देता है।।
आज के.।।१४।।
शीश झुका मंत्री बोला, राजन्! अब कलियुग आ ही गया।
कर न सकेंगे आप व मैं कुछ, मानो सतयुग चला गया।।
चिन्तायुत राजा-मंत्री में, क्रोध दिखाई देता है।।
आज के.।।१५।।
चिन्तन कर राजा ने प्रजा पर, प्रेमपूर्ण दृष्टि डाली।
इस कलियुग को एक बार, सतयुग में बदल देने वाली।।
मानो अब जनता में पुन:, विश्वास दिखाई देता है।।
आज के.।।१६।।
बोल पड़े सब एक साथ, राजन्! इक दिन का अवसर दो।
सरवर क्या हम दूध का सागर, भर देंगे चिन्ता न करो।।
फिर सबके मुख पर अद्भुत, संतोष दिखाई देता है।।
आज के.।।१७।।
अब देखो उस राज्य में दूध का, भरा समन्दर लहराया।
बड़े-बड़े कलशों में दूध ले, सारा गाँव उमड़ आया।।
राजा देख सरोवर को, संतुष्ट दिखाई देता है।।
आज के.।।१८।।
ढोल ढमाके बजे बहुत, राजा ने कहा यह सतयुग है।
अपनी करनी से कर सकते, हम कलियुग में सतयुग हैं।।
इसी धरा पर आज भी राम का, राज दिखाई देता है।।
आज के.।।१९।।
दुनिया वालों देखो! मानव, स्वयं ही रूप बदलता है।
खुद को चतुर मान करके, कलियुग को दोषी कहता है।।
इसमें तो ईमान का केवल, दोष दिखाई देता है।।
आज के.।।२०।।
बंधुओं! अब आप कलियुग में भी कहीं-कहीं दिखने वाले
सतयुग की बात सुनेंगे-
आज के कलियुग में भी सतयुग रूप दिखाई देता है।
जिनवर की प्रतिमा में प्रभु का रूप दिखाई देता है।।टेक.।।
भारत भूमी साधु-साध्वियों, के विचरण से धन्य सदा।
जिनवर के लघुनंदन मुनिवर शांतिसिंधु का जन्म हुआ।।
आज के सन्तों में भी वैसा, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।२१।।
संत शृंखला में इक गणिनी, ज्ञानमती माताजी हैं।
जिनने इस कलियुग में भी, नारी शक्ती बतला दी है।।
तभी आज उनमें ब्राह्मी का, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।२२।।
दिल्ली में चौबिस कल्पद्रुम, मण्डल एक बार रचवाया।
भक्ती की गंगा में भक्तों, को अवगाहन करवाया।।
इन्हीं अनुष्ठानों से सुख, सन्तोष दिखाई देता है।।
आज के.।।२३।।
अन्तर्राष्ट्री ऋषभदेव, निर्वाण महोत्सव करवाया।
प्रधानमंत्री के द्वारा, उसका उद्घाटन करवाया।।
इस उत्सव में व्यसनमुक्ति, उद्घोष दिखाई देता है।।
आज के.।।२४।।
तीर्थ हस्तिनापुरी अयोध्या, कुण्डलपुर उद्धार किया।
तीर्थंकर की जन्मभूमियों, का जग भर में प्रचार किया।।
इसीलिए तीर्थों पर नूतन, रूप दिखाई देता है।।
आज के.।।२५।।
टी.वी. के माध्यम से सब, घर-घर में सुनते गुरुवाणी।
निज जीवन निर्माण हेतु, जन-जन के लिए जो कल्याणी।।
गुरु भक्ती का अब जनता में, जोश दिखाई देता है।।
आज्ा के.।।२६।।
ज्ञानमती माताजी ने अब, शांति वर्ष उद्घोष किया।
राष्ट्रपति प्रतिभा जी ने, उस ज्योति को उद्योत किया।।
तभी ‘‘चंदनामती’’ धरम का, शोर दिखाई देता है।।
आज के.।।२७।।