तर्ज-चाँद मेरे आ जा रे………
आज हम वन्दन करते हैं-२ चन्दनामती के,
प्रज्ञागुणों को, वन्दन करते हैं।। आज हम..।।टेक.।।
माँ ज्ञानमती जी की शिष्या, चन्दन बनकर तुम आई।
वर ज्येष्ठ वदी मावस को, तुमने धरती महकाई।।
बालसति पद में नमते हैं-२।।१।।
लघु वय में तुमने अपने, जीवन में त्याग लिया था।
श्रावण शुक्ला तेरस को, दीक्षा को प्राप्त किया था।।
गुरुपद वन्दन करते हैं-२।।२।।
दीक्षा की रजत जयंती, माताजी की है आई।
‘सुव्रतमति’ ने मंगल की, भावना है मन में भाई।।
भाव से वंदन करते हैं-२।।३।।