ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अंतराय इन आठ कर्मों में नामकर्म की ८३ प्रकृतियां है जिसमें ‘आतप’ नाम कर्म की एक प्रकृति है जिसका लक्षण है- जिसके उदय से पर को आताप करने वाला शरीर हो।’
सूर्य के बिम्ब में स्थित पृथ्वीकायिक बादर जीव के आतप नाम कर्म का उदय होता है अत: उसकी किरणें उष्ण होती है। मूल में सूर्य उष्ण नहीं है। पाँच प्रकार के ज्योतिषी देव होते है- सूर्य,चन्द्र, गृह, नक्षत्र और तारा। इनके विमान चकलीने होने से इन्हें ज्योतिष्क देव कहते है। ये सभी विमान अर्धगोलक सदृश है। ये विमान पृथ्वीकायिक (चमकीली धातु) से बने हुए अकृत्रिम है।
चन्द्र के बिम्ब में स्थित पृथ्वीकायिक के उद्योत नामकर्म का उदय होने से उनके मूल में शीतलता है और किरणें भी शीतल है।