जिसमें चेतनत्वगुण पाया जाए वह आत्मा है। धवला पुस्तक में लिखा है- द्वादशांग का नाम आत्मा है, क्योंकि वह आत्मा का परिणाम है और परिणाम परिणामी से भिन्न होता नहीं क्योंकि मिट्टी द्रव्य से पृथक भूत कोई घर आदि पर्याय पायी जाती नहीं।
आत्मा का दूसरा लक्षण है- दर्शन, ज्ञान, चारित्र को जो सदा प्राप्त हो वह आत्मा है। तीसरा लक्षण द्रव्यसंग्रह ग्रन्थ में बताया है- शुद्ध चैतन्य लक्षण का धारक आत्मा है। आत्मा के ३ भेद है- तिपयारो सो अप्पा परभिंतर बाहरो दु हेऊणं । तत्थ परो झाइज्जइ अंतोवाषेण चयहि बहिरप्पा। ‘अन्तरात्मा, बहिरात्मा और परमात्मा । इनमें से बहिरात्मा को छोड़कर अंतरात्मा के उपाय से परमात्मा का ध्यान करना चाहिए।