नित्य आनन्दस्वरूप शुद्ध आत्मा का चिंतवन करने पर रस नीरस हो जाते हैं, परस्पर वार्तालापरूप कथा का कौतूहल नष्ट हो जाता है, विषय समाप्त हो जाते हैं, शरीर के विषय में भी प्रेम नहीं रहता है, वचन भी मौन को धारण कर लेते हैं तथा मन भी दोषों के साथ मृत्यु को प्राप्त करना चाहता है अर्थात् आत्मा के अनुभव आने पर ये सब विषय स्वयं समाप्त हो जाते हैं। यह अवस्था विशेष महामुनियों के ध्यान में ही हो सकती है। विषयों में फंसे हुए गृहस्थों के कभी संभव नहीं हो सकती।