ध्यान के चार भेदों में सबसे पहला भेद आर्त्तध्यान है।
ध्यान का लक्षण तत्त्वार्थ सूत्र में – उत्तम संहननस्यैकाग्रचिंतानिरोधो ध्यान मांत र्मुहूर्तात् । एक विषय मे चित्तवृत्ति को रोकना ध्यान है। यह उत्तम संहनन वाले को एक अन्तमुहूर्त तक हो सकता है। ध्यान के चार भेद है- आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल इनमें से आर्त,रौद्र ध्यान संसार के हेतु हैं और धर्म, शुक्ल ध्यान मोक्ष के हेतु है। आर्तध्यान का लक्षण – पीड़ा से उत्पन्न हुए ध्यान को आर्तध्यान कहते है। इसके ४ भेद हैं- इष्ट वियोगज, अन्ष्ष्टि संयोगज, वेदनाजन्य, निदाजन । यह आर्तध्यान छङ्गे गुणस्थान तक हो सकता है। छठे में निदान नाम का आर्तध्यान नहीं हो सकता है ।