तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ के मंगलाचरण पर आचार्य श्री समंतभद्र द्वारा रचित १२५ संस्कृत श्लोक बद्ध न्यायपूर्ण ग्रन्थ का नाम आप्तमीमांसा है। इसका दूसरा नाम देवागम स्तोत्र भी है। इसमें न्याय पूर्वक भाववाद-अभाववाद आदि एकांत मतों का निराकरण करते हुए भगवान महावीर में आप्तत्व की सिद्धि की है। श्रीसमन्त भद्र स्वामी ने भगवान को तर्क की कसौटी पर कस करके नमस्कार किया ग्रन्थ का एक श्लोक देखिए-
देवागमनभोयान चामरादिविभूतय: । मायाविष्वपि दृश्यन्ते नातस्त्वमिसि नो महान् । देवों का आगमन, आकाश में गमन, चंवर आदि विभूतियां तो मायावी देवों में भी पायी जाती है अत: आपको इन विभूतियों से हम महान नहीं मानते है।