संसार में जितने भी जीवात्मा हैं सभी में शक्ति रूप से परमात्मा विद्यमान है। जैसे दूध में घी है, तिल में तेल है अथवा बीज से ही वृक्ष बनता है उसी प्रकार से प्रत्येक आत्मा में परमात्मा है। चाहे पुरुष हो या स्त्री, पशु हो या पक्षी, कीट हो पतंग, नारकी हों या देव ।
इन चारों गतियों में भ्रमण करते हुये जीव यद्यपि संसारी हैं क्योंकि जो चतुर्गति में संसरण करते हैं, परिभ्रमण करते हैं, वे ही संसारी कहलाते हैं। फिर भी इन प्रत्येक प्राणी में अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने की शक्ति मौजूद है। अंतर इतना ही है कि मनुष्यों के सिवाय किसी भी प्राणी को पूर्ण पुरुषार्थ करने की योग्यता नहीं है इसलिये जो भी मनुष्य इस स्वयं की शक्ति पर विश्वास करके परमात्मा बनने का प्रयास करता है-पुरुषार्थ करता है। तदनुरूप बताए मार्ग पर चलता है, वो ही एक न एक दिन अपने आपको परमात्मा, परमेश्वर, शुद्ध, बुद्ध,सिद्ध,मुक्त या भगवान महावीर बना लेता है। इसमें किसी भी प्रकार संदेह नहीं है बशर्ते उसका पुरुषार्थ सही होना चाहिये।
पुरुषार्थ क्या है ?
हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील यानी परस्त्री सेवन और परिग्रह ये पाँच पाप हैं। गृहस्थ इनको स्थूल रूप से छोड़कर अणुव्रती या देशव्रती बनता है और साधु इन पांचों पापों को पूर्ण रूप से त्याग कर महाव्रती महात्मा बन जाते हैं। ये साधु अपनी आत्मा की साधना में लगे रहने से ही ‘‘साधु’’ इस सार्थक नाम को धारण करते हैं। वे ही महापुरुष इस विश्व में अगणित जीवों को समीचीन मार्ग का उपदेश देकर विश्व में पूज्य माने जाते हैं। ये ही साधु एक, दो या तीन-चार भवों में अपनी आत्मा को संसार के दुखों से छुड़ाकर सदा-सदा के लिये परमानंद सुख को प्राप्त कर परमात्मा हो जाते हैं। उनमें अनंतदर्शन,अनंतज्ञान,अनंतसौख्य और अनंतवीर्य प्रगट हो जाता है। वे अविनश्वर सुख को प्राप्त होने के बाद पुन: इस जगत् में अवतार न लेने से पुनर्भव से रहित हो जाते हैंं।
इनसे अतिरिक्त जो गृहस्थ हिंसा आदि पापों का अंश-अंश त्याग करते हैं, वे भी गृहस्थाश्रम में रहते हुये सुख, शांति और संपत्ति का उपभोग करते हैं, सदाचारी कहलाते हैं। लोकनिंदा और राजदण्ड से बचे रहते हैं तथा परलोक में भी वे इन अणुव्रतों के प्रभाव से नियम से स्वर्ग को प्राप्त कर बहुत काल तक वहाँ दिव्य सुखों का अनुभव करते हैं। वहाँ से आकर मनुष्य होकर एक न एक दिन साधु बनकर अपने आपको भगवान परमात्मा बना सकते हैं।
इस प्रकार से जैेसे दूध से घी और तिलों से तेल निकाला जाता है तथा बीज से वृक्ष तैयार किया जाता है उसी प्रकार पापों के त्याग से इस आत्मा को परमात्मा बनाया जाता है।