तर्ज—अरे रे…………..
आरती थाल सजा के, रत्न का दीप जला के,
आरती करूँ मैं जिनराज की।।
दश-दशधर्म उत्तम क्षमा आदि हैं,
जिनका पालन करते महामुनि आदि हैं।
थोड़ा-थोड़ा भी जो पालन करें आज हैं,
वे भी प्राप्त करें क्रम से मुक्ति राज्य हैं।।
आरती थाल सजा के, रत्न का दीप जला के।। टेक.।।
क्रोध को घटा के क्षमा भाव रखना है,
मान को हटाके मृदु भाव करना है।
छोड़ दें कुटिलता तो ऋजु भाव हों,
सत्यता को पालें सदा झूठ त्याग हो।।
आरती थाल सजा के,……।।१।।
लोभ को हटाके शौच धर्म पलेगा,
संयमी के द्वारा संयम धर्म चलेगा।
थोड़ा नियम लेके जो भी तप करेगा,
वही उत्तम त्याग धर्म धारण करेगा।।
आरती थाल सजा के,……।।२।।
परिग्रह का त्याग आिंकचन्य धर्म है,
आत्मा में रमण उत्तम ब्रह्मचर्य है।
‘‘चंदनामती’’ जो इनसे सहित होते हैं,
उनकी आरती से सभी पाप धोते हैं।।
आरती थाल सजा के,……।।३।।