दशलक्षण पर्व में दस दिन तक दस धर्मों की पूजा, वाचना, आराधना की जाती है। आर्जव धर्म तीसरा धर्म है।
दस धर्म के नाम इस प्रकार है- उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिञचन्य और ब्रह्मचर्य।
‘योगस्यावक्रता आर्जवम्’। मन-वचन काय की सरलता का नाम आर्जव है। ऋजु अर्थात् सरलता का भाव आर्जव है। अर्थात् मन-वचन काय को कुटिल नहीं करना, इस मायाचारी से अनंतो कष्टों को देने वाली तिर्यंच योनि मिलती है। मृदुमति नाम के मुनि ने मायाचारी की फलस्वरूप वह त्रिलोक मण्डन हाथी हो गया। मायाचारी के निमित्त से राजा सगर को दुर्गति मं जान पड़ा है और उसी निमित्त से हिंसामयी यज्ञ की परम्परा चल पड़ी है। अत: मायाचारी का त्याग करके आर्जव धर्म को धारण करना चाहिए।