सुंदरी आर्यिका मात आदि, त्रय लाख पचास हजार कही। मूलोत्तर गुण से भूषित ये, इन्द्रादिक से भी पूज्य कहीं।। इनकी भक्ती स्तुति करके, हम त्याग धर्म को भजते हैं। संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।२।।