जैन शास्त्रो में बताया है कि भोगभूमि में दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते है उनमे से ‘आलयांग’ एक कल्पवृक्ष का नाम है । दस प्रकार के कल्पवृक्षों के नाम इस प्रकार है –पानांग, तूर्यांग, भूषणांग, वस्त्रांग, भोजनांग, आलयांग, दीपांग, भाजनांग, मालांग, और ज्योतिसं । इनमें से आलयांग नाम का कल्पवृक्ष स्वस्तिक, नंद्यावर्त आदि सोलह प्रकार के दिव्य भवनों को प्रदान करता है। ये सब कल्पवृक्ष न वनस्पति ही है न कोई व्यंतर देव है । किन्तु विशेषता यह है कि ये सब पृथ्वीरूप होते हुए भी जीवों को उनके पुण्य कर्म का फल देते हैं।