किसी भी व्यक्ति की प्रगति में दूसरे लोग तो कम बाधक होते हैं खुद अपनों प्रगति में व्यक्ति स्व ज्यादा बाधक होता है। इसमें सबसे बड़ा कारण आलस्य होता है, जिसके चलते असफल होने पर लोग अपने भाग्य को कोसते हैं। ज्यादातर असफल लोगों को देखा जाए तो यही बात सामने आती है कि अपनी सुविधा और आज का काम कल पर टालने की वजह से उन्हें असफलता मिली।
आलस्य की आदत प्रायः बचपन से ही शुरू हो जाती है। स्कूली शिक्षा के दौरान छोटे से लेकर बड़े विद्यार्थी तक ‘कल से पढ़ाई शुरू करेंगे’ बोलते हुए सुने जाते हैं। माता-पिता या घर के बड़े सदस्य ‘अभी तो बच्चा है’ कहकर उसकी आत बिगाड़ते हैं और उस बच्चे के मन में काम डालने की आदत डेरा जमा लेती है। यानी पर के बड़े सदस्यों का यह मोह-भाव उसको काहिल बनाता है। वहीं अत्यंत निर्धन और असहाय परिवारों में देखने में आता है कि बच्चा घर की जिम्मेदारी के साथ अपनी पढ़ाई में भी लगा रहता है। परिस्थितियों से लड़ने की सीख उसे बचपन से ही मिल जाती है। नतीजा अपनी सक्रियता और कर्मठता से वह असहाय बालक एक दिन उस मुकाम पर पहुंच जाता है, जिसकी लोग कल्पना तक नहीं कर सकते थे।
संत कबीरदास का एक दोहा ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।।’ आलस्य के खिलाफ एक महामंत्र है जिसे हर किसी को निरंतर याद रखना चाहिए। हर समय प्रतिस्पर्धा का वातावरण समाज में रहता रहा है। हर पल नया कुछ करने की होड़ लगी है। एक-एक पल में व्यापक परिवर्तन हो जा रहे हैं। यदि हम कुछ नया करना चाह रहे हैं और उसमें आज-कल लगाए हुए हैं तो वह नया कार्य कोई और कर बैठेगा। ऐसी स्थिति में सिर्फ निराशा ही हाथ लगेगी। व्यक्ति जब असफल होता है तो उससे जुड़े अन्य लोग भी हतोत्साहित होते हैं। रावण ने भी मरते समय यही कहा था कि कोई काम कल पर नहीं टालना चाहिए।