सामायिक में दोनों हाथों को जोड़ कर दायें से बायें घुमाना आवर्त हैं। सामायिक दण्डक के पहले मन,वचन,काय परावर्तन रूप तीन आवर्त होते हैं। इसी तरह सामायिक दण्डक के अन्त में तीन-तीन आवर्त यथायोग्य होते है। इस प्रकार सब मिलकर एक कायोत्सर्ग में १२ आवर्त होते है।
अनगार धर्मामृत में आवर्त का लक्षण लिखा है-मन, वचन, और शरीर की चेष्टा को अथवा उसके द्वारा होने वाले आत्म प्रदेशों के परिस्पन्दन को योग कहते हैं। हिंसादिक अशुभ प्रवृत्तियों से रहित योग प्रशस्त समझा जाता है।इसी प्रशस्त योग को एक अवस्था से हयकर दूसरी अवस्था में ले जाने का नाम परावर्तन है और इसका नाम आवर्त भी है। इसके मन, वचन, काय की अपेक्षा तीन भेद हैं और यह सामायिक तथा स्तवन की आदि में तथा अंत में किया जाता है। समुद्र में जो लहरें उठती है उसे भी आवर्त कहते हैं।