कथिता द्वादशावर्ता वपुर्वचनचेतसाम्।
स्तवसामायिकाद्यन्तपरावर्तनलक्षणा:।।१३।।
अर्थात्-मन, वचन और काय के पलटने को आवर्त कहते हैं। ये आवर्त बारह होते हैं जो सामायिकदण्डक के प्रारम्भ और समाप्ति में तथा चतुर्विंशतिस्तवदण्डक के प्रारम्भ और समाप्ति के समय किये जाते हैं। जैसे-‘‘णमो अरहंताणं’’ इत्यादि सामायिक दण्डक के पहले क्रिया विज्ञापनरूप मनोविकल्प होता है उस मनोविकल्प को छोड़कर सामायिकदंडक के उच्चारण के प्रति मन को लगाना सो मन:परावर्तन है। उसी सामायिकदंडक के पहले भूमिस्पर्शनरूप नमस्कार किया जाता है उस वक्त वन्दनामुद्रा की जाती है उस वन्दनामुद्रा को त्यागकर पुन: खड़ा होकर मुक्ताशुक्तिमुद्रा रूप दोनों हाथों को करके तीन बार घुमाना सो कायपरावर्तन है। ‘‘चैत्यभक्तिकायोत्सर्गं करोमि’’ इत्यादि उच्चारण को छोड़कर ‘‘णमो अरहंताणं’’ इत्यादि पाठ का उच्चारण करना सो वाक्परावर्तन है। इस तरह सामायिक दण्डक के पहले मन, काय और वचन परावर्तनरूप तीन आवर्त होते हैं। इसी तरह सामायिकदण्डक के अन्त में और स्तवदण्डक के आदि तथा अन्त में तीन-तीन आवर्त यथायोग्य होते हैं। एवं सब मिलकर एक कायोत्सर्ग में बारह आवर्त होते हैं।।१३।।
त्रि: सम्पुटीकृतौ हस्तौ भ्रमयित्वा पठेत्पुन:।
साम्यं पठित्वा भ्रमयेत्तौ स्तवेऽप्येतदाचरेत् ।।१४।।
अर्थात्-मुकुलित दोनों हाथों को तीन बार घुमाकर सामायिकदंडक पढ़े । पढ़ कर फिर तीन बार घुमावे। चतुर्विंशतिस्तवदण्डक में भी इसी तरह करे । अर्थात् -मुकुलित दोनों हाथों को तीन बार घुमा कर चतुर्विंशतिस्तव दण्डक पढ़े । पढ़कर फिर मुकुलित दोनों हाथों को तीन बार घुमावे ।।१४।।